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सुप्रीम कोर्ट ने निठारी केस में सुरेंद्र कोली को बरी किया, जांच पर उठे सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने निठारी केस में सुरेंद्र कोली को बरी कर दिया है, जिससे जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। 2006 में हुए इस मामले में 16 नर कंकाल मिले थे, लेकिन अब तक कोई ठोस सबूत नहीं जुटाए जा सके हैं। कोर्ट ने कहा कि संदेह सबूतों की जगह नहीं ले सकता। जानें इस मामले की पूरी कहानी और सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय के बारे में।
 

निठारी केस का नया मोड़

फाइल फोटो.


निठारी केस, जो 2006 में एक भयावह घटना के रूप में सामने आया, अब एक नया मोड़ ले चुका है। मुख्य आरोपी मोनिंदर पढ़ेर और सुरेंद्र कोली, जिनमें से पंढेर पहले ही रिहा हो चुके थे, अब कोली भी जेल से बाहर आ गए हैं। जब मीडिया ने कोली से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने चुपचाप गाड़ी में बैठना पसंद किया।


इस मामले में, नोएडा के निठारी क्षेत्र में एक नाले से 16 नर कंकाल मिले थे, जिसके बाद कई बच्चों के गायब होने की खबरें आई थीं। जब कंकाल मिले, तो पूरे इलाके में हड़कंप मच गया। जांच में पता चला कि यह सब निठारी की कोठी नंबर D-5 से जुड़ा था, जहां पंढेर और कोली रहते थे।


पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार किया, लेकिन लंबी जांच और विभिन्न अदालतों में सुनवाई के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने कोली को आरोपों से बरी करते हुए रिहा करने का आदेश दिया। यह दर्शाता है कि जांच एजेंसियां इस मामले में ठोस सबूत जुटाने में असफल रही हैं।


कंकालों की संख्या पर सवाल

निठारी कांड की गहराई में जाने पर, यह स्पष्ट होता है कि 16 नहीं, बल्कि 17 कंकाल हैं। 16 कंकाल उन बच्चों के हैं, जिनकी चीखें कोठी की दीवारों में दब गईं, और 17वां कंकाल उस जांच का है, जो वर्षों से चल रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस जांच की नाकामी पर कड़ी टिप्पणी की है।


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जांच में कोई ठोस आधार नहीं था और कई लापरवाहियां की गई थीं। यह सवाल उठता है कि जब पंढेर और कोली के खिलाफ कोई सबूत नहीं है, तो बच्चों की हत्याओं का असली दोषी कौन है। पीड़ित परिवार भी यही सवाल पूछ रहे हैं।


सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी बताया कि यह कोली का 13वां मामला है, जिसमें उसे बरी किया गया है। इससे पहले, उसे 12 मामलों में बरी किया जा चुका है। अब दोनों आरोपी बरी हो चुके हैं। कोर्ट ने कहा कि यह दुखद है कि लंबी जांच के बाद भी अपराधी की पहचान नहीं हो सकी।


कोर्ट ने यह भी कहा कि संदेह, चाहे कितना भी गंभीर क्यों न हो, वह सबूतों की जगह नहीं ले सकता। जब तक अपराध साबित नहीं होता, कोई भी व्यक्ति निर्दोष माना जाता है।


जांच में लापरवाही

चीफ जस्टिस बी.आर. गवई और अन्य न्यायाधीशों ने कहा कि जब कोई जांच सही समय पर और पेशेवर तरीके से की जाती है, तो सबसे कठिन रहस्यों को भी सुलझाया जा सकता है। लेकिन इस मामले में लापरवाही ने पूरी प्रक्रिया को कमजोर कर दिया।


सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि खुदाई शुरू होने से पहले उस स्थान को सुरक्षित नहीं किया गया, जिससे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अवसर गंवाए गए। पोस्टमार्टम और फॉरेंसिक परिणामों को सही तरीके से रिकॉर्ड नहीं किया गया।