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सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-हसन की वैधता पर उठाए सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तलाक-ए-हसन की वैधता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। न्यायालय ने संकेत दिया है कि वह इस प्रथा को समाप्त करने पर विचार कर सकता है, जो महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाती है। सुनवाई के दौरान, न्यायालय ने यह पूछा कि क्या 2025 में ऐसी प्रथा को मान्यता दी जानी चाहिए। जानें इस मामले में क्या कहा गया और याचिकाकर्ता के वकील ने क्या दलीलें पेश कीं।
 

तलाक-ए-हसन पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तलाक-ए-हसन की वैधता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। न्यायालय ने संकेत दिया है कि वह इस प्रथा को समाप्त करने पर विचार कर सकता है, जिसके तहत एक मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को तीन महीने तक हर महीने एक बार 'तलाक' कहकर तलाक दे सकता है।


महिलाओं की गरिमा पर सवाल

सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने यह पूछा कि क्या 2025 में एक सभ्य समाज में महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली प्रथा को मान्यता दी जानी चाहिए। न्यायालय ने कहा कि तीन तलाक के बाद अब तलाक-ए-हसन को रद्द करने पर विचार किया जा सकता है।


संविधान पीठ को भेजने पर विचार

जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस उज्ज्वल भुइयां और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की बेंच ने संकेत दिया कि वे इस प्रथा को असंवैधानिक घोषित करने पर गंभीरता से विचार कर सकते हैं। इसके कानूनी पहलुओं को देखते हुए इसे 5-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजने पर भी चर्चा की जा रही है।


सुधारात्मक उपायों की आवश्यकता

जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि जब कोई प्रथा समाज पर व्यापक प्रभाव डालती है, तो न्यायालय को सुधारात्मक उपाय करने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि यदि कोई भेदभावपूर्ण प्रथा है, तो न्यायालय को दखल देना आवश्यक है।


प्रथा की प्रासंगिकता पर सवाल

बेंच ने तलाक-ए-हसन की प्रासंगिकता पर सवाल उठाते हुए कहा कि 2025 में ऐसी प्रथा को कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है। न्यायाधीशों ने पूछा कि क्या इस तरह की प्रथा को एक सभ्य समाज में जारी रहने दिया जाना चाहिए।


जनहित याचिका का मामला

यह मामला पत्रकार बेनजीर हीना द्वारा दायर जनहित याचिका पर आधारित है, जिसमें तलाक-ए-हसन को अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन मानते हुए पूरी तरह से प्रतिबंधित करने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता के पति ने कथित तौर पर एक वकील के माध्यम से तलाक-ए-हसन नोटिस भेजा था।


याचिकाकर्ता के वकील की दलील

सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता के वकील ने उस समस्या को उजागर किया जिसका सामना पीड़ित महिला कर रही है। उन्होंने बताया कि पति ने दूसरी शादी कर ली है, लेकिन हिना यह साबित नहीं कर पा रही हैं कि उनका तलाक हो चुका है।


पति की ओर से पेश वकील का तर्क

पति की ओर से पेश वकील ने तर्क किया कि इस्लाम में तलाक-ए-हसन नोटिस भेजने के लिए किसी व्यक्ति या वकील को नियुक्त करना एक सामान्य प्रथा है। हालांकि, जस्टिस कांत ने सवाल किया कि पति अपनी पत्नी से सीधे संवाद क्यों नहीं कर सकता।