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सुप्रीम कोर्ट ने कुलदीप सिंह सेंगर की जमानत पर लगाई रोक, पूर्व विधायक रहेंगे जेल में

सुप्रीम कोर्ट ने उन्नाव दुष्कर्म मामले में दोषी कुलदीप सिंह सेंगर की जमानत पर रोक लगाते हुए उन्हें जेल में रहने का आदेश दिया है। यह निर्णय दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सीबीआई की याचिका पर आया है। कोर्ट ने कहा कि मामले में महत्वपूर्ण कानूनी सवाल उठे हैं और अगली सुनवाई 20 जनवरी 2026 को होगी। इस फैसले से पीड़िता को बड़ी राहत मिली है। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और कोर्ट के ताजा आदेश के बारे में।
 

सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

नई दिल्ली, 30 दिसंबर 2025: उन्नाव दुष्कर्म मामले में दोषी ठहराए गए पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से एक बड़ा झटका मिला है। शीर्ष अदालत ने सोमवार (29 दिसंबर) को दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी, जिसमें सेंगर की आजीवन कारावास की सजा को निलंबित कर उन्हें सशर्त जमानत दी गई थी। अब सेंगर जेल से बाहर नहीं आ सकेंगे और उन्हें हिरासत में ही रहना होगा।


सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ— प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत, जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह— ने सीबीआई की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। पीठ ने स्पष्ट किया कि इस मामले में कानून के महत्वपूर्ण सवाल उठे हैं, जिन पर विचार करने की आवश्यकता है। कोर्ट ने सेंगर को नोटिस जारी कर चार हफ्तों में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 20 जनवरी 2026 को होगी।


हाईकोर्ट का जमानत आदेश

दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 दिसंबर को सेंगर की अपील लंबित रहने तक उनकी सजा को निलंबित कर दिया था और सशर्त जमानत दी थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि सेंगर ने पहले से ही सात साल पांच महीने जेल में बिताए हैं और वह लोकसेवक की परिभाषा में नहीं आते, इसलिए पोक्सो एक्ट की कड़ी धाराएं लागू नहीं होतीं। जमानत की शर्तों में सेंगर को दिल्ली में रहना, पीड़िता के घर के 5 किमी दायरे में नहीं जाना और पासपोर्ट जमा करना शामिल था।


सीबीआई की चुनौती

सीबीआई ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए कहा कि यह एक गंभीर मामला है, जहां नाबालिग पीड़िता (घटना के समय 15 साल 10 महीने की उम्र) के साथ दुष्कर्म हुआ। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में दलील दी कि विधायक होने के नाते सेंगर प्रभुत्व की स्थिति में थे और पोक्सो एक्ट में लोकसेवक की परिभाषा व्यापक होनी चाहिए। कोर्ट ने इस पर सहमति जताते हुए कहा कि अगर सिपाही या पटवारी लोकसेवक माने जाते हैं तो विधायक को छूट नहीं मिलनी चाहिए।


पीड़िता को कानूनी सहायता

सुनवाई के दौरान पीड़िता की ओर से वकील पेश हुए। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता को अलग से याचिका दाखिल करने का अधिकार है और जरूरत पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी से मुफ्त कानूनी मदद मिल सकती है।


मामले की पृष्ठभूमि

2017 में उन्नाव में नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में 2019 में दिल्ली की निचली अदालत ने सेंगर को आईपीसी की धारा 376 और पोक्सो एक्ट के तहत दोषी ठहराया था। उन्हें आजीवन कारावास और 25 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई थी। सेंगर ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी।


सुप्रीम कोर्ट का फैसला

हाईकोर्ट के जमानत आदेश के बाद देशभर में प्रदर्शन हुए थे और पीड़िता ने सुरक्षा की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से पीड़िता पक्ष को बड़ी राहत मिली है।