सुप्रीम कोर्ट ने उज्जैन की तकिया मस्जिद के मामले में याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट
उज्जैन में स्थित तकिया मस्जिद के संबंध में एक याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। यह याचिका महाकाल मंदिर के निकट पार्किंग क्षेत्र के विस्तार के लिए मस्जिद को गिराने के खिलाफ थी। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने मामले की सुनवाई के बाद इस याचिका को अस्वीकार कर दिया।
याचिकाकर्ता के वकील हुजैफा अहमदी ने अदालत में दलील दी कि पहले की याचिका खारिज करने का आधार यह था कि अधिग्रहण प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। इस पर अदालत ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता केवल कब्जेदार हैं, असली मालिक नहीं।
अहमदी के तर्क
अहमदी ने यह भी कहा कि भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 64 केवल मुआवज़े तक सीमित है और उनका मुख्य मुद्दा यह है कि अधिग्रहण से पहले अनिवार्य सामाजिक प्रभाव आकलन नहीं किया गया। हालांकि, पीठ ने कहा कि सामाजिक प्रभाव आकलन का अधिकार केवल भूमि के मालिकों को है, न कि कब्जेदारों को।
अदालत ने यह भी बताया कि याचिका में अधिग्रहण प्रक्रिया को सीधे चुनौती नहीं दी गई, बल्कि केवल मुआवज़े के निर्धारण पर सवाल उठाया गया है।
तकिया मस्जिद 200 साल पुरानी है और यह पार्किंग सुविधा के विस्तार के लिए अधिग्रहित भूमि पर स्थित थी। इसे इस वर्ष जनवरी में गिरा दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही कहा था कि भूमि अधिग्रहण पूरा हो चुका है और मुआवज़ा भी दिया जा चुका है। याचिकाकर्ताओं ने पहले की याचिका को भी वापस ले लिया था।
न्यायमूर्ति नाथ ने सुनवाई के दौरान कहा, 'अब बहुत देर हो चुकी है, कुछ नहीं किया जा सकता।' याचिकाकर्ता मोहम्मद तैयब और 12 अन्य ने दावा किया कि मस्जिद 1985 से वक्फ संपत्ति थी और वे वहां नमाज अदा करते थे। उन्होंने राज्य सरकार से मस्जिद के पुनर्निर्माण के निर्देश देने और उज्जैन के जिला कलेक्टर तथा भूमि अधिग्रहण अधिकारी के खिलाफ जांच की मांग की थी.