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सुप्रीम कोर्ट ने आयुर्वेदिक विज्ञापनों पर IMA की याचिका खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें पतंजलि आयुर्वेद के विज्ञापनों पर कार्रवाई की मांग की गई थी। AYUSH मंत्रालय द्वारा नियम 170 के हटाने के बाद, नए बेंच ने इसे फिर से लागू करने का निर्णय लिया। न्यायाधीशों ने इस मामले पर महत्वपूर्ण सवाल उठाए, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि केंद्र द्वारा हटाए गए नियमों को राज्य सरकारें कैसे लागू कर सकती हैं।
 

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सोमवार को, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों से संबंधित भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी। यह याचिका पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें विज्ञापनों में झूठे दावों और आधुनिक चिकित्सा प्रणाली को बदनाम करने का आरोप लगाया गया था।


AYUSH मंत्रालय का नोटिफिकेशन

Storyboard 18 के अनुसार, AYUSH मंत्रालय ने 1 जुलाई को एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें 1945 के औषधि और प्रसाधन सामग्री नियमों के नियम 170 को निरस्त कर दिया गया था। कई मीडिया रिपोर्टों में बताया गया कि यह नियम कंपनियों को आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी दवाओं के विज्ञापन से पहले राज्य स्तर पर अनुमति लेने के लिए बाध्य करता था, ताकि झूठे और बढ़ा-चढ़ाकर किए गए दावों को रोका जा सके। नियम के हटने के बाद, पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता समाप्त हो गई।


नए बेंच का हस्तक्षेप

हालांकि, अगस्त 2024 में, यह मामला सुप्रीम कोर्ट के एक नए बेंच के सामने आया, जिसमें जस्टिस हेमा कोहली और संदीप मेहता शामिल थे। इस बेंच ने नियम 170 के हटाने पर अस्थायी रोक लगा दी, जिससे पूर्व अनुमोदन प्रणाली फिर से प्रभावी हो गई।


न्यायाधीशों के सवाल

इस बीच, न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन ने सवाल उठाया कि जब केंद्र ने नियम को हटा दिया है, तो राज्य सरकारें इसे कैसे लागू कर सकती हैं। वहीं, न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने सुझाव दिया कि चूंकि IMA की मुख्य मांगें पहले ही पूरी हो चुकी हैं, इसलिए इस मामले को समाप्त कर देना चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अदालत के पास केंद्र द्वारा हटाए गए किसी भी नियम को फिर से लागू करने का अधिकार नहीं है।