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सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मेनका गांधी की चिंता: आवारा कुत्तों के लिए आश्रय की कमी

सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों से आवारा कुत्तों को हटाने का आदेश दिया है, जिस पर मेनका गांधी ने चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि कुत्तों के लिए पर्याप्त आश्रय स्थल नहीं हैं और 5000 कुत्तों को हटाने से कोई बड़ा बदलाव नहीं आएगा। इस मुद्दे पर अन्य वकीलों और पशु अधिकार कार्यकर्ताओं की भी प्रतिक्रियाएँ आई हैं। जानें इस विवादास्पद आदेश के पीछे की कहानी और इसके संभावित प्रभाव।
 

सुप्रीम कोर्ट का आदेश और मेनका गांधी की प्रतिक्रिया

सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों जैसे स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों और बस स्टॉप से आवारा कुत्तों को हटाने का आदेश दिया है। इस पर पशु अधिकार कार्यकर्ता और भाजपा नेता मेनका गांधी ने शुक्रवार को अपनी गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आवारा कुत्तों के लिए पर्याप्त आश्रय स्थल उपलब्ध नहीं हैं। एएनआई से बातचीत में उन्होंने कहा कि यह न्यायमूर्ति पारदीवाला का निर्णय भी उतना ही गंभीर है। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि 5000 कुत्तों को हटाया जाता है, तो उन्हें कहाँ रखा जाएगा? इसके लिए 50 आश्रय स्थलों की आवश्यकता होगी, जो कि वर्तमान में उपलब्ध नहीं हैं।


आवारा कुत्तों की संख्या और पुनर्वास की चुनौतियाँ

मेनका गांधी ने आगे कहा कि कुत्तों को हटाने के लिए लोगों की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि 5000 कुत्तों को हटाने से कोई विशेष बदलाव नहीं आएगा, खासकर जब यहाँ 8 लाख कुत्ते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यदि यह संभव होता, तो पहले ही किया जाता। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट की वकील और याचिकाकर्ता ननिता शर्मा ने बताया कि आज का आदेश 11 अगस्त के आदेश के समान है। सरकारी और शैक्षणिक संस्थानों से कुत्तों को हटाकर उनका पुनर्वास किया जाएगा। इसके लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कुत्ते इन स्थानों पर वापस न आएं।


पुनर्वास नियमों पर चर्चा

शर्मा ने कहा कि एबीसी (पशु जन्म नियंत्रण) नियमों के तहत पुनर्वास वर्जित है, लेकिन इसे काटने के आधार पर उचित ठहराया गया है। उन्होंने कहा कि आज का आदेश दुर्भाग्यपूर्ण है और आश्रय गृहों का उचित रखरखाव भी आवश्यक है। पीपुल्स फॉर एनिमल्स इंडिया की ट्रस्टी गौरी मौलेखी ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की आलोचना करते हुए कहा कि पीठ ने किसी भी पक्ष को नहीं सुना और यह एक बहुत ही "दुर्भाग्यपूर्ण फैसला" है।