सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: राज्यपाल को विधेयकों पर रोकने का अधिकार नहीं
लोकतंत्र की व्याख्या और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
लोकतंत्र की व्याख्या हर कोई अपने तरीके से करता है, और यह दिलचस्प है कि हर किसी को अपनी व्याख्या सबसे सही लगती है। कुछ लोग इसे खतरे में बताते हैं, जबकि अन्य इसे अहंकार का परिणाम मानते हैं। लेकिन संविधान और लोकतंत्र की सही व्याख्या का कार्य केवल सुप्रीम कोर्ट का है। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच अधिकारों के विवाद पर एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया।
तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच विवाद
यह मामला तमिलनाडु की स्टालिन सरकार और राज्यपाल एन रवि के बीच अधिकारों की खींचतान से शुरू हुआ। 20 नवंबर को कोर्ट ने फैसला सुनाया कि राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकते। यह निर्णय न केवल तमिलनाडु, बल्कि अन्य राज्यों में भी सरकार और राज्यपाल के बीच के विवादों में महत्वपूर्ण साबित होगा।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का निर्णय
यह फैसला सीजीआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनाया। इस पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, विक्रमनाथ, पी एस नरसिम्हा और चंद्रचूड़ भी शामिल थे। संविधान पीठ का कार्य संविधान की व्याख्या से संबंधित कानूनी प्रश्नों पर निर्णय देना होता है।
राज्यपाल के अधिकार और राष्ट्रपति के सवाल
तमिलनाडु के राज्यपाल ने राज्य सरकार के कई बिलों को रोक रखा था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल में कहा था कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। इसके बाद राष्ट्रपति ने राय मांगी थी। कोर्ट ने कहा कि यदि राज्यपाल अत्यधिक और अनावश्यक देरी करते हैं, तो अदालत उन्हें निर्देश दे सकती है कि वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन समय पर करें।
राज्यपाल के विकल्प और न्यायिक समीक्षा
चीफ जस्टिस ने बताया कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास तीन विकल्प हैं: विधेयक को मंजूरी देना, राष्ट्रपति को भेजना या सुझावों के साथ वापस करना। कोई चौथा विकल्प नहीं है। हालांकि, राज्यपाल के निर्णय की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती, लेकिन अनुच्छेद 200 के तहत लंबी निष्क्रियता के मामलों में सीमित न्यायिक समीक्षा संभव है।
संदेह और भ्रम के मुद्दे
पीठ ने कहा कि तमिलनाडु मामले में राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा तय करने वाले फैसले ने संदेह और भ्रम पैदा किए हैं। कुछ निष्कर्ष पिछले फैसलों के विपरीत थे। तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल और पंजाब जैसे राज्यों ने राष्ट्रपति के संदर्भ को स्वीकारने पर आपत्ति की थी।
विधेयकों की स्थिति
तमिलनाडु सरकार का दावा है कि राज्यपाल ने 10 विधेयकों को रोक रखा है। 2023 में ये राष्ट्रपति को भेजे गए थे, जिनमें से 1 को मंजूरी मिली और 7 खारिज हुए। केरल में भी कई विधेयक रुके हुए हैं। कर्नाटक और पंजाब में भी कई विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए लंबित हैं।