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सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: गिरफ्तारी के आधार लिखित रूप में बताना अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि गिरफ्तारी के बाद रिमांड के लिए गिरफ्तारी के आधार को लिखित रूप में बताना अनिवार्य है। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने स्पष्ट किया कि यदि गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी समझ में आने वाली भाषा में नहीं दी जाती है, तो यह अवैध मानी जाएगी। इस निर्णय का उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत गिरफ्तार व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पीछे की वजह।
 

गिरफ्तारी के बाद रिमांड पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी के बाद रिमांड के संबंध में एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने सभी अपराधों के लिए गिरफ्तारी के आधार को लिखित रूप में प्रस्तुत करने का आदेश दिया है। मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने स्पष्ट किया कि गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी समझ में आने वाली भाषा में गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी दी जानी चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया जाता है, तो गिरफ्तारी और रिमांड दोनों अवैध माने जाएंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी देना केवल एक औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह एक अनिवार्य संवैधानिक सुरक्षा है। यदि किसी व्यक्ति को तुरंत उसकी गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी नहीं दी जाती है, तो यह उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा, जिससे अनुच्छेद 21 के तहत उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन होगा और गिरफ्तारी अवैध हो जाएगी।

गिरफ्तारी के आधार बताना अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार बताना सभी कानूनों के तहत अनिवार्य है, जिसमें IPC 1860 (अब BNS 2023) के अंतर्गत आने वाले अपराध भी शामिल हैं। गिरफ्तारी के कारणों को गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी समझ में आने वाली भाषा में लिखित रूप में बताया जाना चाहिए।

रिमांड के लिए जानकारी देने की प्रक्रिया

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि गिरफ्तारी के समय अधिकारी गिरफ्तारी के कारण लिखित रूप में बताने में असमर्थ हैं, तो उन्हें मौखिक रूप से जानकारी देनी चाहिए। इसके बाद, गिरफ्तार व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने से कम से कम 2 घंटे पहले लिखित रूप में जानकारी दी जानी चाहिए। यदि इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता है, तो गिरफ्तारी और रिमांड अवैध माने जाएंगे और व्यक्ति को रिहा किया जाएगा।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला मुंबई में एक हाई-प्रोफाइल हिट-एंड-रन मामले से संबंधित है, जिसमें आरोपी याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी हुई थी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने पहले गिरफ्तारी में प्रक्रियात्मक खामियों को स्वीकार किया था, लेकिन अपराध की गंभीरता और याचिकाकर्ता द्वारा हिरासत से बचने के प्रयासों के कारण इसे अवैध घोषित करने से इनकार कर दिया था.