सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: किरायेदार नहीं कर सकता मालिकाना हक पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट.
सुप्रीम कोर्ट ने आज एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है जिसमें किरायेदार और मालिक के बीच के विवाद पर स्पष्टता दी गई है। कोर्ट ने कहा कि एक किरायेदार, जो किसी संपत्ति में किरायेदारी के लिए रेंट डीड पर हस्ताक्षर करता है, वह बाद में मकान मालिक के मालिकाना हक को चुनौती नहीं दे सकता। कोर्ट ने इसे ‘डॉक्ट्राइन ऑफ एस्टॉपेल’ के खिलाफ बताया है।
सरल शब्दों में, यदि आप किसी के मकान में किराए पर रहते हैं और रेंट डीड पर साइन करते हैं, तो आप यह मान लेते हैं कि जिस व्यक्ति ने आपको मकान दिया है, वही उसका असली मालिक है। इसके बाद आप यह नहीं कह सकते कि वह मकान उस व्यक्ति का नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून ऐसे दावे को रोकता है।
निर्णय का संदर्भ
यह फैसला ज्योति शर्मा बनाम विष्णु गोयल (2025 INSC 1099) मामले में सुनाया गया है, जिसे भविष्य में संदर्भ के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। कोर्ट ने किरायेदार के खिलाफ फैसला सुनाते हुए मकान मालिक को संपत्ति का कब्जा वापस पाने और बकाया किराए की वसूली का आदेश दिया है।
कोर्ट द्वारा स्पष्ट किए गए मुद्दे
किरायेदार का मालिकाना हक का दावा नहीं- कोर्ट ने कहा कि जिन किरायेदारों के परिवारों ने 50 वर्षों से अधिक समय तक मूल मालिक को किराया दिया है, वे अब उनके मालिकाना हक पर सवाल नहीं उठा सकते। एक ‘रिलिंक्विशमेंट डीड’ से भी मूल मालिक के हक की पुष्टि हुई है।
मालिकाना हक का प्रमाण- कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि किरायेदार को बेदखल करने के मामलों में, मालिकाना हक के सबूत को उतनी सख्ती से नहीं देखा जाता, जितना कि मालिकाना हक के ऐलान के अलग मुकदमे में।
विल का महत्व- मकान मालिक के पक्ष में बाद में मिली ‘विल’ की प्रोबेट को कानूनी मान्यता दी गई थी, जिसे उच्च न्यायालय द्वारा नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए था।
मालिक की आवश्यकता का औचित्य- मकान मालिक की यह दलील स्वीकार की गई कि उन्हें अपने पति के मिठाई और नमकीन के व्यवसाय में शामिल होने और उसका विस्तार करने के लिए खाली किए जाने वाले परिसर की आवश्यकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के उन आदेशों को रद्द कर दिया जो मकान मालिक के खिलाफ थे। अदालत ने किरायेदार को जनवरी 2000 से बकाया किराए का भुगतान करने और किराए में चूक और मकान मालिक की वाजिब जरूरत के आधार पर संपत्ति खाली करने का आदेश दिया है.