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सीता स्वयंवर: राजा जनक की अनोखी शर्त और भगवान राम की विजय

सीता स्वयंवर का आयोजन राजा जनक ने अपनी पुत्री के लिए किया था, जिसमें उन्होंने एक कठिन शर्त रखी थी। जानें कैसे भगवान राम ने इस चुनौती को स्वीकार किया और सीता से विवाह किया। यह कहानी न केवल प्रेम की है, बल्कि शक्ति और समर्पण की भी है। जानें इस रोचक प्रसंग के बारे में और अधिक जानकारी के लिए पूरा लेख पढ़ें।
 

सीता स्वयंवर का महत्व

सीता स्वयंवर

हिंदू धर्म में विवाह पंचमी का विशेष महत्व है, जो हर साल अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष यह पर्व 25 नवंबर 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान राम और माता सीता का विवाह हुआ था। वाल्मीकि रामायण में माता सीता के स्वयंवर का प्रसंग बहुत रोचक है, जिसमें राजा जनक ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए एक कठिन शर्त रखी थी, जिसे पूरा करना बड़े-बड़े राजाओं के लिए भी संभव नहीं था.


भगवान राम और माता सीता का विवाह

भगवान राम और माता सीता का विवाह

राम और सीता का विवाह त्रेता युग में मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नेपाल के जनकपुर (मिथिला) में संपन्न हुआ। यह स्थान जानकी मंदिर के निकट एक विवाह मंडप के रूप में प्रसिद्ध है, जहां भगवान राम ने सीता से स्वयंवर में विवाह किया। इस दिन को भगवान राम और माता सीता की शादी की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है.


राजा जनक की शर्त

सीता स्वयंवर में राजा जनक ने क्या शर्त रखी?

राजा जनक ने यह शर्त रखी थी कि जो भी शिव के विशाल धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, वही माता सीता का पति बनेगा। राजा जनक ने यह शर्त इसलिए रखी थी क्योंकि बचपन में देवी सीता ने स्वयं ही एक हाथ से इस धनुष को उठाया था, जिससे राजा जनक ने यह प्रतिज्ञा की थी कि केवल असाधारण और शक्तिशाली व्यक्ति ही उनकी पुत्री का पति हो सकता है.

  1. शर्त:- भगवान शिव के विशाल धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाना.


राजा जनक की सोच

राजा जनक ने क्यों रखी थी शर्त?

एक बार बचपन में सीता माता ने अपने महल के पूजा स्थल पर रखे धनुष को एक हाथ से उठाया था। जब राजा जनक ने यह देखा, तो उन्हें लगा कि केवल एक अलौकिक व्यक्ति ही उनकी पुत्री के लिए योग्य वर हो सकता है.


स्वयंवर में रावण की उपस्थिति

सीता स्वयंवर में रावण भी हुआ शामिल

इसी कारण राजा जनक ने माता सीता के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया, जिसमें कई शक्तिशाली राजा शामिल हुए। माता सीता के स्वयंवर में लंकापति रावण भी उपस्थित था। लेकिन देवी सीता से विवाह की इच्छा रखने वाले सभी राजा इस शर्त को पूरा करने में असफल रहे.


भगवान राम की सफलता

भगवान राम ने ऐसे जीता सीता स्वयंवर

भगवान राम ने देखा कि सभी राजा धनुष को उठाने के लिए बल का प्रयोग कर रहे हैं, इसलिए वे असफल हो रहे थे। उन्होंने पहले शिवजी के धनुष को प्रणाम किया और फिर माता सीता की तरह विनम्रता से धनुष उठाने का प्रयास किया। वह धनुष आसानी से उठ गया, और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। इसके बाद भगवान राम और माता सीता का विवाह संपन्न हुआ.