सीजेआई बीआर गवई ने न्यायिक सक्रियता पर दी महत्वपूर्ण चेतावनी
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने नागपुर में एक समारोह में न्यायिक सक्रियता के महत्व पर जोर दिया और न्यायिक अतिक्रमण के खिलाफ चेतावनी दी। उन्होंने अपने पिता के सपनों का जिक्र करते हुए बताया कि न्यायपालिका को न्यायिक दुस्साहस में नहीं बदलना चाहिए। इस दौरान उन्होंने एक मजेदार किस्सा भी साझा किया, जिससे माहौल हल्का हो गया। जानें उनके विचार और न्यायपालिका के प्रति उनकी दृष्टि।
Jun 28, 2025, 13:40 IST
न्यायिक अतिक्रमण के खिलाफ चेतावनी
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने नागपुर जिला बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक भव्य समारोह में न्यायिक सक्रियता के नाम पर न्यायिक अतिक्रमण के प्रति चेतावनी दी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि न्यायिक सक्रियता आवश्यक है, लेकिन इसे न्यायिक दुस्साहस या आतंकवाद में नहीं बदलना चाहिए। उन्होंने लोकतंत्र के तीन स्तंभों - विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संवैधानिक सीमाओं को बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया।
पिता का सपना और न्यायमूर्ति गवई का सफर
मेरे पिता का सपना था कि मैं...
न्यायमूर्ति गवई ने हाल ही में भारत के 52वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। इस अवसर पर नागपुर जिला न्यायालय बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने अपने पिता की इच्छाओं का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि जब उनके नाम की उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के लिए सिफारिश की गई, तो उनके पिता ने कहा कि वकील बनकर केवल पैसे के पीछे भागने के बजाय न्यायाधीश बनकर समाज की भलाई के लिए काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनके पिता चाहते थे कि वह एक दिन भारत के प्रधान न्यायाधीश बनें, लेकिन वह ऐसा होते देखने के लिए जीवित नहीं रहे।
हेमा मालिनी का मजेदार किस्सा
हेमा मालिनी का मजेदार किस्सा
प्रधान न्यायाधीश ने दर्शकों को हल्का करने के लिए एक मजेदार घटना साझा की, जब नागपुर जिला अदालत में अभिनेत्री हेमा मालिनी के खिलाफ चेक बाउंस का मामला दर्ज किया गया था। उन्होंने बताया कि उस दिन अदालत में हेमा मालिनी की एक झलक पाने के लिए भारी भीड़ थी, और इस पर सभी लोग हंस पड़े।
न्यायिक आतंकवाद पर विचार
न्यायिक आतंकवाद नहीं
सीजेआई गवई ने न्यायपालिका के संदर्भ में कहा कि न्यायिक सक्रियता बनी रहेगी, लेकिन इसे न्यायिक दुस्साहस या आतंकवाद में नहीं बदलना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र के तीनों अंगों के लिए सीमाएं निर्धारित हैं और सभी को कानून के अनुसार कार्य करना चाहिए। जब संसद कानून से परे जाती है, तो न्यायपालिका हस्तक्षेप कर सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि न्यायिक सक्रियता को न्यायिक दुस्साहस में बदलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।