सम्राट चौधरी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका: जन्मतिथि में विरोधाभास का मामला
सम्राट चौधरी पर याचिका दायर
सम्राट चौधरी
सम्राट चौधरी के खिलाफ झूठे हलफनामे पेश करने के मामले में उचित कार्रवाई की मांग की गई है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 2002 के निर्णय के संदर्भ में चुनाव आयोग को मुकदमा दर्ज करने का निर्देश देने की अपील की गई है। याचिका में कहा गया है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125ए के तहत चुनाव आयोग को अभियोजन शुरू करने के लिए निर्देशित किया जाए।
सर्वोच्च अदालत से यह भी अनुरोध किया गया है कि बिहार के उपमुख्यमंत्री के पद से हटाने के लिए भारत के चुनाव आयोग को निर्देशित किया जाए। याचिका में यह भी कहा गया है कि सभी संवैधानिक प्राधिकारियों को निर्देश दिया जाए कि वे ऐसे नामांकन पत्रों को अस्वीकार करें जिनमें कोई विरोधाभास हो।
याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि सम्राट चौधरी ने विभिन्न जन्मतिथियों और उम्र के साथ कई हलफनामे प्रस्तुत किए हैं। इनमें 1995 में 15 साल का नाबालिग होने का दावा और 1999 के चुनाव के लिए 25 साल से अधिक उम्र का दावा शामिल है। इसके अलावा, 2020 और 2025 के चुनावी हलफनामों में भी विरोधाभासी उम्र का उल्लेख किया गया है।
नामांकन के समय उम्र का विवाद
सुप्रीम कोर्ट के 2002 के निर्णय में स्कूल में दाखिले और बिहार बोर्ड के दस्तावेजों का उल्लेख है, जिसमें यह स्पष्ट होता है कि उम्मीदवार 1999 के नामांकन के समय 25 साल के नहीं थे। अदालत ने 01.05.1981 को सही जन्मतिथि के रूप में स्वीकार किया और चुनाव को रद्द कर दिया था।
याचिका में यह भी कहा गया है कि संवैधानिक अयोग्यता और दस्तावेजों की गलत जानकारी के बावजूद उम्मीदवार ने विरोधाभासी हलफनामे दाखिल करना जारी रखा है। वह 2020 और 2025 में उच्च सार्वजनिक पद पर आसीन है, जबकि चुनाव आयोग या राज्यपाल जैसे वैधानिक प्राधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
जानबूझकर पहचान में हेरफेर
उम्मीदवार ने नामांकन पत्र दाखिल करते समय चार अलग-अलग नामों का उपयोग किया - राकेश कुमार, राकेश कुमार, सम्राट चौधरी और सम्राट चंद्र मौर्य। यह चुनावी और कानूनी जांच से बचने के लिए जानबूझकर पहचान में हेरफेर का संकेत देता है। याचिकाकर्ता प्रिया मिश्रा ने वकील नरेंद्र मिश्रा के माध्यम से सम्राट चौधरी के खिलाफ याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की है।