सत्य साईं बाबा की शिक्षाएं: 100 साल बाद भी जीवित है उनका संदेश
सत्य साईं बाबा की शताब्दी समारोह
आध्यात्मिक गुरु श्री सत्य साईं बाबा
सत्य साईं बाबा का शताब्दी समारोह: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार (19 नवंबर) को आंध्र प्रदेश के पुट्टपर्थी में दिवंगत आध्यात्मिक गुरु श्री सत्य साईं बाबा के जन्म शताब्दी समारोह में भाग लेंगे। प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुसार, पीएम मोदी पुट्टपर्थी स्थित प्रशांति निलयम आश्रम और ‘महासमाधि’ पर श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। इस अवसर पर, वे सत्य साईं बाबा के जीवन, शिक्षाओं और स्थायी विरासत को सम्मान देते हुए एक स्मारक सिक्का और डाक टिकटों की श्रृंखला भी जारी करेंगे, और जनसमूह को संबोधित करेंगे। इस खास मौके पर, आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें और उनकी पांच प्रमुख शिक्षाएँ, जिन्होंने विश्व भर में लाखों लोगों को प्रेरित किया।
श्री सत्य साईं बाबा का परिचय
जन्म: सत्य साईं बाबा का जन्म 23 नवंबर 1926 को आंध्र प्रदेश के पुट्टपर्थी गांव में सत्यनारायण राजू के रूप में हुआ था।
अवतार का उद्घोष: उन्होंने केवल 14 वर्ष की आयु में, 20 अक्टूबर 1940 को, स्वयं को शिरडी के साईं बाबा का अवतार घोषित किया और अपना जीवन मानवता की सेवा में समर्पित कर दिया।
प्रशांति निलयम: 1950 में, उनके 25वें जन्मदिन पर, पुट्टपर्थी में उनके मुख्य आश्रम ‘प्रशांति निलयम’ की स्थापना हुई, जो आज करोड़ों भक्तों का केंद्र है।
महाप्रयाण: एक लंबी बीमारी के बाद, 24 अप्रैल 2011 को उन्होंने 84 वर्ष की आयु में पुट्टपर्थी में महासमाधि ली। उन्हें राजकीय सम्मान के साथ आश्रम के कुलवंत हॉल में समाधि दी गई।
वैश्विक प्रभाव: सत्य साईं बाबा को विश्व के सबसे प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरुओं में से एक माना जाता है, जिनके केंद्र 178 से अधिक देशों में स्थापित हैं।
सत्य साईं बाबा की 5 प्रमुख शिक्षाएं
सत्य साईं बाबा का दर्शन सरल और मानवतावादी था। उनकी शिक्षाएं पांच मानव मूल्यों (सत्य, धर्म, शांति, प्रेम, अहिंसा) पर आधारित हैं, जिन्हें उन्होंने ‘पंचशील’ कहा।
सबको प्रेम करो, सबकी सेवा करो
यह उनकी सबसे प्रमुख शिक्षा थी, जो करुणा और निस्वार्थता की भावना से जीने का आह्वान करती है। बाबा का मानना था कि हर जीव में ईश्वर का वास है, इसलिए सच्ची पूजा मानव सेवा में निहित है।
कथन: “सबसे प्यार करो, सबकी सेवा करो। हमेशा मदद करो, कभी दुःख न दो।”
मानव मूल्य का पालन
उन्होंने सत्य (सत्यनिष्ठा), धर्म (सही आचरण), शांति, प्रेम (करुणा) और अहिंसा को जीवन का आधार बताया। उनका कहना था कि इन मूल्यों को दैनिक जीवन में शामिल करने से ही समाज में नैतिकता और भाईचारा स्थापित होगा।
ईश्वर एक है
बाबा ने सभी धर्मों के प्रति सम्मान की भावना सिखाई। उनका संदेश था कि ईश्वर एक ही है, भले ही उसे अलग-अलग नामों और रूपों में पूजा जाता हो। उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता और एकता पर जोर दिया।
कथन: “कोई भी धर्म बेहतर या कोई भी धर्म खराब नहीं है, हमें सभी धर्मों का एक समान सम्मान करना चाहिए।”
निस्वार्थ सेवा कार्य
बाबा ने शिक्षा, स्वास्थ्य और शुद्ध पेयजल के क्षेत्र में अभूतपूर्व निस्वार्थ सेवा कार्य किए। उनके ट्रस्टों ने विश्वस्तरीय अस्पताल, विश्वविद्यालय और जल परियोजनाएं स्थापित कीं, जो गरीबों और जरूरतमंदों को निःशुल्क सेवाएँ प्रदान करती हैं। उन्होंने सिखाया कि सेवा बिना किसी अपेक्षा के की जानी चाहिए।
राष्ट्रधर्म सर्वोपरि
साईं बाबा ने राष्ट्र के प्रति कर्तव्यनिष्ठा को भी एक महत्वपूर्ण शिक्षा बताया। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को अपनी धार्मिक निष्ठा के साथ-साथ, पूरी ईमानदारी और समर्पण से अपने राष्ट्र के कानूनों का पालन करना और उसका सम्मान करना चाहिए।