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सत्य साईं बाबा की जन्म शताब्दी समारोह में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की भागीदारी

सत्य साईं बाबा की जन्म शताब्दी समारोह की तैयारियां जोरों पर हैं, जिसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल होंगे। जानें साईं बाबा के जीवन, उनके योगदान और शिक्षाओं के बारे में। यह समारोह न केवल श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह मानवता की सेवा के प्रति उनके समर्पण को भी दर्शाता है।
 

साईं बाबा की शिक्षाएं और उनके योगदान

भारत की पवित्र भूमि संतों और महापुरुषों की कर्मभूमि रही है, जहां अनेक संतों ने अपने अद्भुत कार्यों से मानवता को सही मार्ग दिखाया है। इनमें शिरडी के साईं बाबा और पुट्टपर्थी के सत्य साईं बाबा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। दोनों ही संत अपने समय में चमत्कारों और सेवा कार्यों के लिए प्रसिद्ध रहे। भक्तों का मानना है कि सत्य साईं बाबा, शिरडी साईं बाबा के पुनर्जन्म थे। अब सत्य साईं बाबा की जन्म शताब्दी समारोह की तैयारियां चल रही हैं, जिसमें देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री शामिल होने वाले हैं.


राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का समारोह में शामिल होना

सत्य साईं बाबा का जन्म 23 नवंबर 1926 को आंध्र प्रदेश के पुट्टपर्थी में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय समाज सेवा, शिक्षा और मानव कल्याण में समर्पित किया। उनका निधन 24 अप्रैल 2011 को हुआ, लेकिन उनके द्वारा स्थापित आश्रम और संस्थान आज भी मानवता की सेवा में लगे हुए हैं। उनकी जन्म शताब्दी समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल होंगे। प्रधानमंत्री मोदी 19 नवंबर को पुट्टपर्थी पहुंचेंगे, जबकि राष्ट्रपति मुर्मू 22 नवंबर को समारोह में भाग लेंगी। इस आयोजन में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है.


शिरडी साईं बाबा का परिचय

शिरडी साईं बाबा का जन्म 1838 में महाराष्ट्र के शिरडी में हुआ। उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों परंपराओं को एकजुट करने का कार्य किया। उनका मूल संदेश था, 'सबका मालिक एक।' साईं बाबा ने अपना जीवन जरूरतमंदों की सेवा, आध्यात्मिक ज्ञान और प्रेम-सद्भावना के प्रसार में बिताया। उनके चमत्कारों और करुणा की अनेक कथाएं आज भी भक्तों के बीच प्रचलित हैं। उन्होंने 1918 में समाधि ली, और आज शिरडी में उनका मंदिर देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है.


सत्य साईं बाबा का उद्देश्य

सत्य साईं बाबा ने स्वयं को शिरडी साईं बाबा का पुनर्जन्म बताया। उन्होंने अपने प्रवचनों में कहा कि शिरडी साईं बाबा का उद्देश्य भक्ति और ईश्वर प्रेम जगाना था, जबकि उनका (सत्य साईं का) उद्देश्य सेवा और शिक्षा के माध्यम से मानवता को उन्नति के मार्ग पर ले जाना है। उन्होंने कई विश्वविद्यालय, अस्पताल, पेयजल परियोजनाएं और सामाजिक संस्थान स्थापित किए। उनके द्वारा स्थापित सत्य साईं संस्थान आज भी लाखों जरूरतमंदों को निःशुल्क चिकित्सा, शिक्षा और भोजन प्रदान कर रहे हैं.


दोनों संतों का समान संदेश

शिरडी साईं बाबा ने कहा था: दूसरों की मदद करना ही सबसे बड़ा धर्म है।
सत्य साईं बाबा ने कहा: Love All, Serve All, सबको प्रेम करो, सबकी सेवा करो।
दोनों संतों की शिक्षाओं में प्रेम, करुणा, और आत्मसमर्पण का भाव समान है। यही कारण है कि आज भी भारत और विश्वभर में करोड़ों श्रद्धालु इन दोनों को एक ही दिव्य शक्ति के दो रूप मानते हैं.