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संभल में फर्जी वोटर बनाने का मामला: 48 लोगों पर एफआईआर दर्ज

उत्तर प्रदेश के संभल में पंचायत चुनाव से पहले एक गंभीर मामला सामने आया है, जिसमें 48 लोगों पर फर्जी वोटर बनाने का आरोप है। प्रशासन ने इस मामले में एफआईआर दर्ज की है, जो चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप का संकेत देती है। जिलाधिकारी के निरीक्षण के दौरान यह मामला उजागर हुआ, जिसके बाद जांच समिति का गठन किया गया। क्या यह मामला केवल 48 नामों तक सीमित रहेगा, या इसके पीछे और भी बड़े फर्जीवाड़े का पर्दाफाश होगा? जानें पूरी जानकारी इस लेख में।
 

संभल में फर्जी वोटिंग का मामला

संभल
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों से पहले, संभल के विलालपत गांव में फर्जी मतदाता बनाने का मामला प्रशासन के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया है। 48 व्यक्तियों के खिलाफ फर्जी दस्तावेजों और गलत आधार संशोधन के माध्यम से मतदाता सूची में नाम जोड़ने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई है। यह कार्रवाई लेखपाल गुन्नू बाबू की शिकायत पर की गई।

यह मामला तब सामने आया जब जिलाधिकारी डॉ. राजेंद्र सिंह हाल ही में गांव का दौरा कर रहे थे। उन्होंने वहां एसआईआर के कार्यों का निरीक्षण किया और गंभीर शिकायतें सुनीं। इन शिकायतों को ध्यान में रखते हुए, जिलाधिकारी ने तुरंत एक जांच समिति का गठन किया। समिति ने 19 दिसंबर को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें बताया गया कि कई लोगों ने बीएलओ को फर्जी दस्तावेज दिए, जिसके आधार पर उनके नाम मतदाता सूची में जोड़े गए। यह चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप का मामला है।

जांच रिपोर्ट के आधार पर, जिलाधिकारी ने 20 दिसंबर को कठोर कार्रवाई के आदेश दिए। इसके बाद 22 दिसंबर को तहसीलदार ने पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए। लेखपाल गुन्नू बाबू ने बताया कि डीएम के आदेश पर असमोली थाने में मामला दर्ज किया गया है, जिसमें ग्राम विलालपत के 48 नामजद आरोपी शामिल हैं, जिनमें पुरुष और महिलाएं दोनों हैं। सभी पर फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से वोट बनाने का आरोप है।

जांच रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि ग्राम विलालपत में आधार कार्ड में गलत संशोधन कराकर वोट बनाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार, जांच का दायरा और बढ़ सकता है और आने वाले दिनों में और नाम सामने आ सकते हैं। यह मामला केवल फर्जी वोट बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि पंचायत चुनावों से पहले लोकतंत्र को कमजोर करने की एक साजिश के रूप में देखा जा रहा है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इतना बड़ा फर्जीवाड़ा बिना किसी अंदरूनी मिलीभगत के संभव था? क्या कार्रवाई केवल 48 नामों तक सीमित रहेगी या फर्जी वोटर नेटवर्क की पूरी परतें उखड़ेंगी?