संजय सिंह की पदयात्रा: रोजगार और सामाजिक न्याय की मांग
पदयात्रा का ऐलान
राज्यसभा सांसद संजय सिंह
आम आदमी पार्टी ने 12 से 24 नवंबर तक सरयू से संगम तक 180 किलोमीटर लंबी पदयात्रा का आयोजन करने की घोषणा की है, जिसका नाम 'रोजगार दो, सामाजिक न्याय दो' रखा गया है। इस यात्रा का नेतृत्व संजय सिंह करेंगे, जो संसद से लेकर सड़क तक उत्तर प्रदेश के लोगों की आवाज उठाने का दावा कर रहे हैं। इस यात्रा में युवा, किसान, शिक्षक, समाजसेवी और विभिन्न वर्गों के लोग शामिल होंगे।
जनता के दर्द की आवाज
पार्टी ने कहा कि यह यात्रा केवल थकान से नहीं, बल्कि जनता के दर्द, आक्रोश और उम्मीदों से प्रेरित होगी। बेरोजगारी से जूझ रहे युवा, फसल का उचित मूल्य न मिलने से परेशान किसान, छोटे उद्योगों से जुड़े लोग, शिक्षक, आशा बहुएं और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सभी सरकार से जवाब मांग रहे हैं। जब सत्ता चुप रहती है, तब जनता की आवाज सड़कों पर सुनाई देती है।
जनता के अधिकारों की रक्षा
थीम सॉन्ग की चर्चा
इस पदयात्रा का थीम सॉन्ग 'मैं देश बचाने निकला हूं' पहले से ही चर्चा में है। मशहूर गायक अल्तमश फरीदी की आवाज और बिलाल भाई की लिखी पंक्तियों ने इसे एक भावनात्मक पहचान दी है। यह गीत केवल संगीत नहीं, बल्कि एक संदेश है जो युवा, मजदूर और किसान की भावनाओं को व्यक्त करता है।
सरकार पर आरोप
किसानों की अनदेखी
संजय सिंह ने स्पष्ट किया कि यह यात्रा राजनीतिक रस्म नहीं, बल्कि जनता के अधिकारों की लड़ाई है। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार ने रोजगार के नाम पर बड़े वादे किए हैं, लेकिन आज उत्तर प्रदेश बेरोजगारी की राजधानी बन गया है। सरकारी भर्तियां रुकी हुई हैं और परीक्षाएं लटकी हुई हैं। पेपर लीक ने लाखों युवाओं का भविष्य प्रभावित किया है।
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में किसान अपनी उपज का उचित मूल्य पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, गन्ना किसानों का भुगतान महीनों तक लटका रहता है, और छोटे उद्योगों के बंद होने से मजदूरों का जीवन प्रभावित हो रहा है। सरकार के पास विज्ञापनों के लिए धन है, लेकिन रोजगार और किसानों के लिए कोई जवाब नहीं है।
संजय सिंह की छवि
संजय सिंह को एक ऐसे नेता के रूप में देखा जाता है जिसे खरीदना या डराना आसान नहीं है। उन्होंने संसद में घोटालों का खुलासा किया है, पेपर लीक पर आवाज उठाई है, और किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया है। पार्टी का कहना है कि यह यात्रा बीजेपी सरकार के लिए केवल एक राजनीतिक चुनौती नहीं, बल्कि जनता के सवालों का सार्वजनिक चार्जशीट बनकर खड़ी होगी।