शनिदेव की कथा: पिता के अपमान से लेकर सर्वोच्च पद तक का सफर
शनिदेव का महत्व और उनकी कहानी
शनिदेवImage Credit source: AI
शनिदेव: हिंदू धर्म में नवग्रहों का विशेष स्थान है। ये नौ ग्रह — सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु — मानव जीवन के कर्म और भाग्य को प्रभावित करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इनमें से एक देवता को अपने पिता के कारण गहरा दुःख सहना पड़ा, जिसने उन्हें भगवान शिव की शरण में पहुँचाया? कठोर तपस्या के बाद, शनिदेव ने न केवल अपने दुखों को दूर किया, बल्कि नवग्रहों में सर्वोच्च स्थान भी प्राप्त किया। आइए, इस कथा को विस्तार से जानते हैं।
पिता सूर्य से मिला दुःख और शाप
शनिदेव, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, शनिदेव को अपने पिता से जीवन का सबसे बड़ा दुःख और शाप मिला।
गर्भावस्था में कष्ट: कहा जाता है कि जब शनिदेव माता छाया के गर्भ में थे, तब छाया ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। इस तपस्या के प्रभाव और गर्भ में शनिदेव के लंबे समय तक रहने के कारण, जब उनका जन्म हुआ, तो उनका रंग कुछ काला था।
पिता की उपेक्षा: शनिदेव के काले रंग को देखकर सूर्य देव ने उन्हें अपनी संतान मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने छाया को भी अपमानित किया और शनिदेव को एक अशुभ और मंदगामी ग्रह होने का शाप दे दिया।
अपमान का गहरा घाव: पिता के इस तिरस्कार ने शनिदेव के दिल को गहरा दुःख पहुँचाया। यही कारण है कि ज्योतिष में शनि और सूर्य के संबंध को ‘पितृ-शत्रुता’ के रूप में देखा जाता है।
भगवान शिव से मिला वरदान और सर्वोच्च पद
स्कंद पुराण के काशी खंड के अनुसार, पिता द्वारा अपमानित होने के बाद, शनिदेव ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से समस्त लोक कंपित हो उठे। शनिदेव की अटल भक्ति को देखकर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए। शनिदेव ने शिव से कहा, “हे पिता! मैं ऐसा पद प्राप्त करना चाहता हूँ, जिसे आज तक किसी ने प्राप्त नहीं किया।” भगवान शिव ने शनिदेव को नवग्रहों में सर्वोच्च स्थान प्रदान किया और कहा कि “तुम कर्मों के अनुसार फल देने वाले दंडाधिकारी बनोगे।”
क्यों हैं शनिदेव सर्वश्रेष्ठ देवता?
यह कथा बताती है कि कैसे एक अपमानित पुत्र ने अपने तप के बल पर नवग्रहों में सबसे शक्तिशाली स्थान प्राप्त किया। शनिदेव अब केवल दुःख के नहीं, बल्कि न्याय, अनुशासन और कर्मठता के देवता हैं। वह किसी के साथ अन्याय नहीं करते, बल्कि हर किसी को उसके किए गए कर्मों का फल देते हैं। ज्योतिष के अनुसार, शनिदेव ही वह ग्रह हैं जो व्यक्ति को सांसारिक मोह से मुक्त कर मोक्ष की ओर ले जाते हैं। यही वरदान शनिदेव को नवग्रहों में एक ऐसा ‘सर्वश्रेष्ठ देवता’ बनाता है, जो दुःख से निकलकर तपस्या और शिवजी की कृपा से पूजनीय बने।