विदेश मंत्री जयशंकर ने वैश्विक राजनीति में भारत की भूमिका पर प्रकाश डाला
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पुणे में सिम्बायोसिस इंटरनेशनल के दीक्षांत समारोह में भारत की बदलती वैश्विक भूमिका पर विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि आज की दुनिया एकध्रुवीय नहीं है और भारत की शक्ति उसकी मानव संसाधन क्षमता में निहित है। जयशंकर ने वैश्विक शक्ति संतुलन में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका और उसकी नई विदेश नीति के बारे में भी चर्चा की। उनका वक्तव्य भारत की सामरिक सफलता और वैश्विक मंच पर उसकी स्थिति को स्पष्ट करता है।
Dec 20, 2025, 16:26 IST
सिम्बायोसिस इंटरनेशनल के दीक्षांत समारोह में जयशंकर का संबोधन
पुणे में सिम्बायोसिस इंटरनेशनल (डीम्ड यूनिवर्सिटी) के 22वें दीक्षांत समारोह में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था के बदलते परिदृश्य पर एक स्पष्ट और आत्मविश्वासी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि वर्तमान में दुनिया एकध्रुवीय नहीं रह गई है, और वैश्विक शक्ति संतुलन में महत्वपूर्ण परिवर्तन आ चुके हैं, जिससे कई नए शक्ति केंद्र उभरे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी देश की यह क्षमता नहीं है कि वह हर मुद्दे पर अपनी मर्जी थोप सके।
शक्ति की नई परिभाषा
जयशंकर ने बताया कि शक्ति की परिभाषा अब केवल सैन्य ताकत तक सीमित नहीं है। व्यापार, ऊर्जा, संसाधन, तकनीक, पूंजी और सबसे महत्वपूर्ण, प्रतिभा, ये सभी आज शक्ति के महत्वपूर्ण तत्व बन गए हैं। उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण ने दुनिया के सोचने और कार्य करने के तरीकों को पूरी तरह से बदल दिया है। ऐसे में, भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह एक मजबूत विनिर्माण क्षमता विकसित करे, ताकि वह तकनीकी दौड़ में पीछे न रह जाए।
भारत की सकारात्मक छवि
विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि आज भारत को दुनिया पहले से कहीं अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण से देख रही है। उन्होंने बताया कि भारत की 'नेशनल ब्रांड वैल्यू' और भारतीयों की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। भारतीयों को अब मेहनती, तकनीक में सक्षम और पारिवारिक मूल्यों से जुड़े समाज के रूप में देखा जा रहा है। प्रवासी भारतीयों की भूमिका और भारत में व्यापारिक एवं सामाजिक माहौल में सुधार ने पुराने नकारात्मक स्टीरियोटाइप्स को पीछे छोड़ दिया है।
भारत की मानव संसाधन क्षमता
जयशंकर ने कहा कि भारत की ताकत उसकी मानव संसाधन क्षमता में निहित है। वैश्विक कैपेबिलिटी सेंटर्स की बढ़ती संख्या और भारतीय प्रतिभा की अंतरराष्ट्रीय मांग इस बदलाव के ठोस प्रमाण हैं। उन्होंने यह भी बताया कि विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के बीच कृत्रिम विभाजन निरर्थक है और दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। पिछले दशक में उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या में दोगुनी वृद्धि भारत के भविष्य की तैयारी का संकेत है।
भारत की प्रगति और वैश्विक स्थिति
उन्होंने पश्चिमी देशों की तुलना करते हुए कहा कि कई पश्चिमी अर्थव्यवस्थाएं ठहराव का अनुभव कर रही हैं, जबकि भारत ने सुधारों के बाद, विशेषकर पिछले एक दशक में, उल्लेखनीय प्रगति की है। इन घटनाक्रमों का समग्र परिणाम यह है कि वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक 'पेकिंग ऑर्डर' में निर्णायक बदलाव आया है और भारत इस बदलाव के केंद्र में है।
भारत की नई विदेश नीति
जयशंकर के शब्द भारत की बदलती विदेश नीति का संकेत देते हैं। यह वह भारत है जो न तो किसी गुट का पिछलग्गू है और न ही किसी दबाव में झुकता है। बहुध्रुवीय दुनिया में भारत खुद को 'बैलेंसर' नहीं, बल्कि 'शेपर' के रूप में स्थापित कर रहा है। पिछले एक दशक में भारतीय विदेश नीति ने नैरेटिव बदल दिया है। कभी 'नॉन-अलाइनमेंट' की छाया में रहने वाला भारत आज 'मल्टी-अलाइनमेंट' के हथियार से लैस है। अमेरिका, रूस, यूरोप, मध्य-पूर्व, इंडो-पैसिफिक, हर मंच पर भारत अपने राष्ट्रीय हित को केंद्र में रखकर संवाद करता है। यही वजह है कि आज दुनिया भारत की बात सुनती है।
भारत की सामरिक सफलता
भारत की सामरिक सफलता का मूल मंत्र उसकी मानव पूंजी है। जयशंकर ने सही कहा कि भारत की विशिष्टता उसकी प्रतिभा में है। तकनीक, डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, स्टार्टअप इकोसिस्टम और वैश्विक श्रम बाजार में भारतीयों की स्वीकार्यता, भारत की 'सॉफ्ट पावर' को 'स्ट्रैटेजिक पावर' में बदल चुकी है। यह ताकत न तो प्रतिबंधों से रोकी जा सकती है और न ही दबाव से कुचली जा सकती है। विनिर्माण पर जोर और आत्मनिर्भरता की बात कोई संरक्षणवादी नारा नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक अनिवार्यता है। सप्लाई चेन संकटों ने दुनिया को सिखा दिया है कि आर्थिक निर्भरता राजनीतिक कमजोरी बन जाती है। ऐसे में भारत का मैन्युफैक्चरिंग पुश, तकनीकी आत्मनिर्भरता और स्किल डेवलपमेंट, उसे एक निर्णायक वैश्विक खिलाड़ी बनाते हैं।
भारत की उभरती शक्ति
पश्चिम के ठहराव और भारत की गति के इस अंतर ने वैश्विक शक्ति संतुलन को हिला दिया है। यही कारण है कि आज भारत को 'उभरती शक्ति' नहीं, बल्कि 'अपरिहार्य शक्ति' के रूप में देखा जा रहा है। यह बदलाव संयोग नहीं, बल्कि सुनियोजित नीति, स्पष्ट नेतृत्व और राष्ट्रीय आत्मविश्वास का परिणाम है।
जयशंकर का स्पष्ट वक्तव्य
जयशंकर का वक्तव्य भारत की विदेश नीति का आईना है, जो सीधा, बेबाक और धारदार है। आज का भारत अपने हित खुद परिभाषित करता है, अपने साझेदार खुद चुनता है और वैश्विक मंच पर अपनी शर्तों पर चलता है। बहुध्रुवीय दुनिया में भारत अब सिर्फ एक ध्रुव नहीं, बल्कि दिशा तय करने वाली शक्ति बन चुका है।