वंदे मातरम् पर सियासी विवाद: पीएम मोदी और कांग्रेस के बीच तीखी बहस
वंदे मातरम् का 150वां वर्ष और सियासी हलचल
पीएम मोदी और राहुल गांधी.
राष्ट्रगीत वंदे मातरम् के 150 साल पूरे होने के अवसर पर पीएम मोदी ने कांग्रेस पर कटाक्ष किया, जिससे राजनीतिक विवाद उत्पन्न हो गया है। वंदे मातरम् को लेकर धर्मयुद्ध की स्थिति बन गई है, जिसमें नए राज्यों के नाम भी शामिल हो रहे हैं। हाल ही में कश्मीर से इस मुद्दे पर नई बहस शुरू हुई है, जिसमें हिंदू-मुस्लिम के बीच तनाव की बातें सामने आ रही हैं। पीएम मोदी के बयान के जवाब में कांग्रेस ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है।
कांग्रेस की नेता सुप्रिया श्रीनेत ने एक पोस्ट में कहा कि कांग्रेस पार्टी के सभी आयोजनों में वंदे मातरम् और जन गण मन गाए जाते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएस और बीजेपी ने अपने कार्यालयों में कभी भी इन राष्ट्रगानों का गायन नहीं किया, बल्कि वे अपने संगठन के गीत गाते हैं।
कश्मीर में वंदे मातरम् का विरोध
मुत्तहिदा मजलिस-ए-उलेमा का विरोध
जम्मू-कश्मीर में वंदे मातरम् को लेकर विरोध की आवाजें तेज हो गई हैं। यहां एक आदेश जारी किया गया था कि सभी स्कूलों में राष्ट्रगीत के 150 वर्ष पूरे होने पर वंदे मातरम् गाया जाए। इस आदेश के खिलाफ मुत्तहिदा मजलिस-ए-उलेमा ने विरोध जताया है।
MMU के नेता मीरवाइज उमर फारूक ने कहा कि सांस्कृतिक उत्सव के नाम पर हिंदुत्व विचारधारा को थोपने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि मुस्लिम समुदाय इस राष्ट्रगीत को नहीं गाएगा क्योंकि इसके कुछ अंश इस्लामी मान्यताओं के खिलाफ हैं।
वंदे मातरम् पर मुस्लिम नेताओं की आपत्ति
मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाएं
मुस्लिम नेताओं का कहना है कि वंदे मातरम् गीत इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है। इस गीत में भारत माता को नमन किया गया है, जो उनके लिए बुतपरस्ती के समान है। मुस्लिम केवल अल्लाह के सामने ही सिर झुकाते हैं।
इन तर्कों के साथ, कश्मीर में वंदे मातरम् को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। पीएम मोदी ने इस अवसर पर विशेष स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी किया और कांग्रेस पर कटाक्ष किया। उन्होंने बताया कि कैसे वंदे मातरम् को तोड़ा गया था।
वंदे मातरम् का ऐतिहासिक संदर्भ
पंडित नेहरू की समिति
1937 में वंदे मातरम् पर हिंदू-मुस्लिम टकराव को रोकने के लिए पंडित नेहरू की अगुआई में एक समिति का गठन किया गया था। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने इस गीत को पढ़ा और बताया कि इसके पहले दो पद इस्लाम विरोधी नहीं हैं।
तब यह तय किया गया कि केवल पहले दो छंद गाए जाएंगे ताकि मुस्लिम समुदाय की भावनाएं आहत न हों। पीएम मोदी ने इस ऐतिहासिक तथ्य का उल्लेख किया और कहा कि वंदे मातरम् को तोड़ने का यह निर्णय देश के विभाजन के बीज बोने वाला था।
टैगोर का योगदान
रवींद्रनाथ टैगोर का गायन
वंदे मातरम् को पहली बार रवींद्रनाथ टैगोर ने 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में गाया। आजादी के बाद इसे 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाया गया।
यह गीत बंगाल के स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, और ब्रिटिश सरकार ने इससे इतना डर गया कि इस पर प्रतिबंध लगाने पर विचार किया। अब इसी राष्ट्रगीत को लेकर देश में विवाद उत्पन्न हो रहा है।