रूस-यूक्रेन संघर्ष का भारतीय युवाओं पर प्रभाव: एक गंभीर चिंता
रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव
रूस-यूक्रेन युद्ध ने न केवल यूरोप की सुरक्षा को प्रभावित किया है, बल्कि भारत जैसे दूरस्थ देशों के नागरिकों पर भी इसका गहरा असर पड़ा है। पंजाब और कश्मीर के कई परिवार इस समय कठिनाई का सामना कर रहे हैं, क्योंकि उनके बेटे जो शिक्षा या रोजगार के लिए रूस गए थे, अब युद्ध में शामिल होने के लिए मजबूर हो रहे हैं। यह स्थिति उस खतरनाक तंत्र की ओर इशारा करती है, जिसमें ट्रैवल एजेंट, झूठे रोजगार के वादे और युद्धग्रस्त देशों की आक्रामक नीतियाँ मिलकर गरीब परिवारों के युवाओं का भविष्य बर्बाद कर रही हैं। इनमें से अधिकांश युवा किसान परिवारों या श्रमिक वर्ग से आते हैं, जिनके माता-पिता उन्हें विदेश भेजने के लिए जमीन बेचते हैं या कर्ज लेते हैं। लेकिन शिक्षा और नौकरी की खोज उन्हें सीधे युद्ध के मैदान में धकेल देती है।
मानवाधिकार उल्लंघन और सरकारी चेतावनी
रूस में इस तरह की भर्ती वास्तव में जबरन श्रम और मानवाधिकारों का उल्लंघन है। हाल ही में, भारत सरकार ने अपने नागरिकों को चेतावनी दी है कि वे रूसी सेना में शामिल होने के किसी भी प्रस्ताव से दूर रहें। विदेश मंत्रालय ने मास्को के साथ औपचारिक आपत्ति दर्ज कराई है, लेकिन वास्तविकता यह है कि कई भारतीय पहले से ही युद्ध क्षेत्र में फंसे हुए हैं। यह घटनाक्रम इस बात का संकेत है कि रूस जैसे शक्तिशाली देश अपने सैनिकों की कमी को पूरा करने के लिए विदेशी नागरिकों का उपयोग कर रहे हैं। यह केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि एशिया और अफ्रीका के अन्य देशों के नागरिकों के साथ भी ऐसा हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए यह एक चेतावनी है कि युद्धों की कीमत अब केवल सैनिक नहीं, बल्कि निर्दोष छात्र और श्रमिक भी चुका रहे हैं।
भारत की चुनौतियाँ
भारत के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है—एक ओर अपने फंसे नागरिकों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करना और दूसरी ओर लोगों को इस प्रकार के धोखाधड़ी से बचाना। इसके लिए सरकार को रूस के साथ सख्त कूटनीतिक संवाद करना होगा, साथ ही देश के भीतर उन एजेंटों पर भी कार्रवाई करनी होगी जो युवाओं को ऐसे जाल में फंसा रहे हैं। यह पूरा मामला इस कटु सच्चाई को उजागर करता है कि वैश्विक भू-राजनीतिक संघर्षों में सबसे अधिक पीड़ित वे लोग होते हैं, जिनकी आवाज़ सबसे कमजोर होती है। पंजाब और कश्मीर के वे परिवार, जिनके बेटे आज यूक्रेन की खाइयों में हैं, यही सवाल कर रहे हैं कि शिक्षा के सपनों को आखिर युद्ध की आग में क्यों जलना पड़ा।