रूस ने तालिबान को दी मान्यता: भारत का रुख क्या होगा?
रूस की तालिबान को मान्यता
काबुल पर तालिबान के नियंत्रण के लगभग चार साल बाद, रूस पहला ऐसा देश बन गया है जिसने तालिबान सरकार को मान्यता दी है और अपने संबंधों को पूरी तरह से स्थापित किया है। इस घटनाक्रम के बाद, भारत, चीन, पाकिस्तान और ईरान की ओर सभी की नजरें हैं, क्योंकि ये देश पहले से ही तालिबान के साथ बातचीत कर रहे हैं, लेकिन किसी ने भी औपचारिक मान्यता नहीं दी है।
अफगान विदेश मंत्री का बयान
रूस के इस निर्णय का स्वागत करते हुए, अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने कहा, "हम रूस द्वारा उठाए गए इस साहसी कदम की सराहना करते हैं और आशा करते हैं कि यह अन्य देशों के लिए भी एक उदाहरण बनेगा।"
भारत का तालिबान के साथ इतिहास
1996 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद, भारत ने काबुल में अपना दूतावास बंद कर दिया था। उस समय भारत ने तालिबान को मान्यता देने से इनकार किया, क्योंकि उसे यह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों से जुड़ा हुआ प्रतीत होता था। 2001 में तालिबान के सत्ता से हटने के बाद, भारत ने फिर से काबुल में अपना दूतावास खोला, लेकिन यह लगातार तालिबान और उससे जुड़े समूहों के निशाने पर रहा।
तालिबान के पुनः कब्जे के बाद भारत का रुख
2021 में तालिबान ने फिर से काबुल पर कब्जा कर लिया। इसके तुरंत बाद, पाकिस्तान और चीन ने तालिबान के साथ अपने संबंधों को मजबूत करना शुरू कर दिया। इस स्थिति को देखते हुए, भारत ने अपने रुख में बदलाव किया और अस्थायी रूप से बंद भारतीय दूतावास को फिर से खोला। इसके बाद, तालिबान अधिकारियों से बातचीत के लिए एक डेलिगेशन दोहा पहुंचा।
भारत की मानवीय सहायता
भारत ने तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद भी अफगानिस्तान को मानवीय सहायता प्रदान करना जारी रखा है। भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तालिबान की आलोचना करने से भी परहेज किया है।
मान्यता में देरी का कारण
भारत तालिबान के प्रति कूटनीतिक सतर्कता बरत रहा है और ‘वेट एंड वॉच’ नीति पर काम कर रहा है। भारत ने तालिबान के साथ सीमित कूटनीतिक संपर्क बनाए रखे हैं, लेकिन आधिकारिक मान्यता देने में जल्दबाजी नहीं की है।
भारत और तालिबान के संबंध
अफगानिस्तान भारत के लिए एक महत्वपूर्ण देश है और ऐतिहासिक रूप से भारत के अफगानिस्तान के साथ अच्छे संबंध रहे हैं। भारत ने बिना औपचारिक मान्यता के भी तालिबान के साथ करीबी संबंध बनाए रखे हैं।