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राष्ट्रपति मुर्मू का आदिवासी सशक्तिकरण पर जोर

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आदिवासी समुदायों के सशक्तिकरण पर जोर देते हुए कहा कि सच्चा सशक्तिकरण लोगों के अधिकारों को मान्यता देने से ही संभव है। उन्होंने आदिवासी संस्कृति के संरक्षण और प्रौद्योगिकी के उपयोग की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला। राष्ट्रपति ने वन अधिकार अधिनियम को सामाजिक न्याय का महत्वपूर्ण साधन बताया और आदिवासी समुदायों से सक्रिय रूप से अपने विकास की जिम्मेदारी लेने का आग्रह किया।
 

सच्चे सशक्तिकरण की आवश्यकता

मंगलवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि सच्चा सशक्तिकरण केवल तब संभव है जब लोगों के अधिकारों को मान्यता दी जाए। उन्होंने आदिवासी समुदायों से आग्रह किया कि वे अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए अपने विकास की दिशा में सक्रिय कदम उठाएं।


आदिवासी प्रतिनिधियों से संवाद

राष्ट्रपति मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में विभिन्न राज्यों से आए आदिवासी समुदायों के प्रतिष्ठित सदस्यों को संबोधित किया। उन्होंने कहा, "हमें मिलकर एक ऐसा समाज और देश बनाने की दिशा में काम करना चाहिए, जहां समानता, न्याय और सम्मान का माहौल हो।"


संस्कृति और पहचान का संरक्षण

उन्होंने आदिवासी लोगों की संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि प्रौद्योगिकी का उपयोग करके उन्हें मुख्यधारा से जोड़ा जाना चाहिए।


वन अधिकार अधिनियम का महत्व

राष्ट्रपति ने वन अधिकार अधिनियम को सामाजिक न्याय, समानता और पर्यावरण संरक्षण का एक महत्वपूर्ण साधन बताया। उन्होंने कहा कि असली सशक्तिकरण केवल योजनाओं के माध्यम से नहीं, बल्कि लोगों के अधिकारों को मान्यता देने से आता है।


आदिवासी समुदायों की जिम्मेदारी

मुर्मू ने कहा कि आदिवासी समुदायों को अपनी पहचान और संस्कृति को बनाए रखते हुए सक्रिय रूप से अपने विकास की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।