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रामायण की त्रिजटा: रावण के डर का रहस्य

रामायण की कथा में त्रिजटा एक महत्वपूर्ण पात्र हैं, जो रावण की भतीजी और विभीषण की पुत्री हैं। उनकी भविष्यवाणियाँ रावण के लिए डर का कारण बनीं। जानें कैसे त्रिजटा ने रावण की नींद उड़ा दी और माता सीता को साहस दिया। इस पौराणिक कथा के पीछे छिपे रहस्य को जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख।
 

रामायण कथा


रामायण कथा Image Credit source: AI


विभीषण की पुत्री कौन थीं: जब भी लंका और रावण का नाम लिया जाता है, तो अक्सर राक्षसी प्रवृत्तियों का जिक्र होता है। लेकिन विभीषण के अलावा त्रिजटा नाम की एक और पात्र थीं, जो धर्म के मार्ग पर चलती थीं। त्रिजटा, रावण की भतीजी और विभीषण की बेटी थीं, जिन्हें माता सीता की सुरक्षा का कार्य सौंपा गया था। क्या आप जानते हैं कि रावण, जो अत्यंत शक्तिशाली था, अपनी ही भतीजी त्रिजटा से क्यों डरता था? आइए, इस पौराणिक कथा के पीछे छिपे रहस्य को जानते हैं।


त्रिजटा का परिचय


वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में त्रिजटा का उल्लेख मिलता है। वह राक्षसी होते हुए भी विदुषी, धर्मज्ञ और सत्यवादी थीं। उन्हें भविष्यवाणी करने की क्षमता प्राप्त थी। कहा जाता है कि त्रिजटा को ध्यान और स्वप्न के माध्यम से भविष्य की घटनाओं का ज्ञान हो जाता था। यही कारण था कि उनके कथन को कभी भी असत्य नहीं माना जाता था। रामायण में रावण के अहंकार और पराक्रम के कई किस्से हैं, लेकिन त्रिजटा के सामने रावण खुद को असहाय महसूस करता था। आइए जानते हैं उस दिव्य शक्ति का रहस्य जिसने रावण की नींद उड़ा दी थी।


रावण के भय का कारण


रावण के डर का मुख्य कारण त्रिजटा द्वारा देखा गया एक भयानक सपना था। जब रावण माता सीता को डराने आया, तब त्रिजटा ने अन्य राक्षसियों को रोकते हुए अपने स्वप्न के बारे में बताया। उसने भविष्यवाणी की थी कि उसने सपने में देखा कि एक वानर ने लंका को भस्म कर दिया है। उसने देखा कि प्रभु श्रीराम हाथी पर सवार होकर आ रहे हैं और लंका पर विजय प्राप्त कर रहे हैं। त्रिजटा ने यह भी कहा कि रावण नग्न अवस्था में दक्षिण दिशा की ओर जा रहा है, जो मृत्यु का संकेत था।


त्रिजटा की बातों पर रावण का विश्वास


रावण तंत्र-मंत्र और ज्योतिष का ज्ञाता था। उसे पता था कि त्रिजटा की वाणी में सत्य है और उसकी भविष्यवाणियाँ हमेशा सही होती थीं। जब त्रिजटा ने रावण के विनाश और विभीषण के राजतिलक की बात कही, तो रावण को अपनी हार का आभास होने लगा।


सीता के लिए त्रिजटा का साहस


अशोक वाटिका में जब माता सीता बहुत दुखी थीं, तब त्रिजटा ही थीं जिन्होंने उन्हें ढांढस बंधाया। उन्होंने सीता जी को बताया कि उनके प्रभु श्रीराम अवश्य आएंगे, क्योंकि ग्रहों की चाल इस ओर इशारा कर रही थी। रावण के लिए त्रिजटा का यह सत्य एक मानसिक हार की तरह था। रावण को किसी अस्त्र-शस्त्र से उतना डर नहीं लगता था, जितना उसे उस अटल सत्य से लगता था जो त्रिजटा की आंखों में था।