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रामायण की अद्भुत कथा: रावण ने श्रीराम को दिया विजय का आशीर्वाद

रामायण की कथा में एक अद्भुत प्रसंग है, जिसमें रावण ने युद्ध से पहले श्रीराम को विजय का आशीर्वाद दिया। यह घटना रावण संहिता में वर्णित है, जो दर्शाती है कि रावण ने राम को अपने शत्रु के रूप में नहीं देखा। जानें इस अद्भुत प्रसंग के बारे में और कैसे रावण ने यज्ञ कर अपने धर्म का पालन किया।
 

रामायण कथा

रामायण कथा

रामायण कथा: त्रेता युग में भगवान श्री हरि विष्णु ने श्रीराम के रूप में अवतार लिया। इस युग में भगवान राम ने लंकापति रावण का वध कर बुराई पर अच्छाई की विजय सुनिश्चित की। यह तो सभी जानते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि युद्ध से पहले रावण ने स्वयं श्रीराम को विजय का आशीर्वाद दिया था?

यह सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन यह सत्य है। रावण संहिता के एक खंड में इसका उल्लेख है। आइए, इस अद्भुत प्रसंग के बारे में जानते हैं।

यज्ञ कराने का विचार

रावण संहिता का लेखक स्वयं लंकापति रावण था। इस संहिता के अनुसार, भगवान श्रीराम और वानर सेना माता सीता की खोज में लंका के निकट पहुंचे। उस समय रावण के मन में विचार आया कि देवों के देव महादेव के आशीर्वाद के लिए यज्ञ किया जाए। यज्ञ की सफलता के लिए उसे किसी विद्वान पंडित की आवश्यकता थी।

त्रेता युग में रावण से बड़ा शिव भक्त और विद्वान कोई और नहीं था। राम जी ने अपनी विजय के लिए यज्ञ कराने का निमंत्रण रावण को भेजा। भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति के कारण रावण ने राम जी का निमंत्रण स्वीकार कर लिया। उस समय रावण ने राम जी को अपने शत्रु के रूप में नहीं देखा और यज्ञ संपन्न कराया। यज्ञ समाप्त होने के बाद जब रावण लंका लौटने लगा, तो राम जी ने उसे रोक लिया।

रावण ने राम जी को आशीर्वाद दिया

राम जी ने रावण से युद्ध में विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद मांगा। रावण ने तथास्तु कहकर राम जी को आशीर्वाद दिया। इसके बाद युद्ध में राम जी ने रावण का अंत कर विजय प्राप्त की। कुछ शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि रावण को यह नहीं पता था कि वह अपने शत्रु का यज्ञ करा रहा है। यह भी कहा जाता है कि रावण जानता था कि उसका अंत राम के हाथों होगा, फिर भी उसने यज्ञ कर अपने धर्म का पालन किया।

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