राजस्थान हाई कोर्ट का अनोखा फैसला: बहू को हर महीने देना होगा 20,000 रुपये
महिला की नौकरी से ससुर को मिलेगी आर्थिक सहायता
ससुर ने ही दिलवाई थी बहू को अपनी नौकरी!
राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण मामले में निर्णय सुनाया है, जिसमें एक विधवा बहू को उसकी सरकारी नौकरी के वेतन से हर महीने 20,000 रुपये उसके ससुर को देने का आदेश दिया गया है। यह निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि महिला ने अपने ससुर की मदद से यह नौकरी प्राप्त की थी, लेकिन नौकरी मिलने के बाद उसने अपने ससुर-सास को छोड़ दिया और दूसरी शादी कर ली।
ससुर ने बहू को दिलवाई नौकरी
यह मामला 2015 का है। याचिकाकर्ता श्री भगवान के बेटे, स्वर्गीय राजेश कुमार, अजमेर विद्युत वितरण निगम में तकनीकी सहायक के पद पर कार्यरत थे। 15 सितंबर 2015 को उनके निधन के बाद परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।
विभाग ने 1996 के नियमों के तहत श्री भगवान को अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन करने को कहा। रिकॉर्ड्स से यह स्पष्ट है कि नौकरी का पहला प्रस्ताव श्री भगवान को मिला था, लेकिन उन्होंने अपनी बहू, श्रीमती शशि कुमारी के नाम की सिफारिश की।
अधिकारियों की जांच में यह बात सामने आई कि श्री भगवान और उनकी पत्नी की आजीविका का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं था और वे अपने बेटे पर निर्भर थे। बेटे की मृत्यु के बाद, उन्हें दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही थी।
नौकरी के लिए दिया गया शपथ पत्र
इस मामले का एक महत्वपूर्ण पहलू वह शपथ पत्र है, जो बहू शशि कुमारी ने 19 अक्टूबर 2015 को नौकरी के लिए आवेदन करते समय दिया था। इस हलफनामे में उसने तीन वादे किए थे: वह अपने मृतक पति के माता-पिता के साथ रहेगी, उनकी देखभाल करेगी और दोबारा शादी नहीं करेगी।
हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह महिला के पुनर्विवाह के अधिकार पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा है। लेकिन, ससुर-सास के भरण-पोषण का आश्वासन उस अनुकंपा नियुक्ति का मुख्य आधार था। इसी वादे के आधार पर उसे 15 मार्च 2016 को लोअर डिवीजन क्लर्क के पद पर नियुक्ति दी गई।
नौकरी मिलने के बाद बदला रुख
रिपोर्ट के अनुसार, पति की मृत्यु के 18 दिन बाद ही बहू शशि कुमारी ने अपने ससुराल छोड़ दिया और अपने माता-पिता के साथ रहने चली गई। उसने अपने ससुर-सास से सारे रिश्ते तोड़ लिए।
उसे पति के प्रोविडेंट फंड और मुआवजे की लगभग 70% राशि भी मिली। नौकरी और पैसे मिलने के बाद, उसने अपने ससुर-सास को पूरी तरह से त्याग दिया और बाद में किसी और से शादी कर ली। जब उसके ससुर के पास जीवनयापन का कोई सहारा नहीं बचा, तब उन्होंने न्याय के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
बहू ने कोर्ट में तर्क दिया कि उसने शुरू में उनका समर्थन किया था, लेकिन बाद में उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, जिसने उसे घर छोड़ने के लिए मजबूर किया। उसने यह भी कहा कि पुनर्विवाह के बाद उसकी अपने पूर्व ससुर-सास के प्रति कोई कानूनी बाध्यता नहीं बची है।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
राजस्थान हाई कोर्ट ने इस मामले को इंसानी दर्द का एक मार्मिक उदाहरण बताया। अदालत ने कहा कि बहू के व्यवहार ने अनुकंपा नियुक्ति के असली उद्देश्य को बेकार कर दिया है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि परिवार का मतलब सिर्फ मृतक की पत्नी नहीं होता, बल्कि इसमें वे सभी लोग शामिल होते हैं जो उस व्यक्ति पर निर्भर थे। अदालत ने कहा कि बहू ने इस नौकरी का लाभ एक शपथ पत्र के आधार पर लिया था, इसलिए अब वह उस वादे से मुकर नहीं सकती।
कोर्ट ने ससुर को मिलेगा पैसा
इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने आदेश दिया कि 1 नवंबर 2025 से, विभाग बहू की सैलरी से हर महीने 20,000 रुपये की कटौती करे और यह राशि सीधे ससुर के बैंक खाते में जमा कराए। यह भुगतान उनके जीवनकाल तक जारी रहेगा.