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राजस्थान उच्च न्यायालय ने राजकॉम्प के करोड़ों के फर्जीवाड़े पर नोटिस जारी किया

राजस्थान उच्च न्यायालय ने पब्लिक अगेंस्ट करप्शन संस्था की याचिका पर राजकॉम्प के करोड़ों रुपए के फर्जीवाड़े के मामलों में कार्रवाई न करने पर अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि राजकॉम्प के अधिकारियों ने मिलकर लीगल मैट्रोलॉजी और ईपीडीएस प्रोजेक्ट्स में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी की। उच्च न्यायालय ने संबंधित विभागों के सचिवों को जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया है। इस मामले में एसीबी की कार्रवाई पर भी सवाल उठाए गए हैं।
 

राजकॉम्प के फर्जीवाड़े पर उच्च न्यायालय की कार्रवाई

पब्लिक अगेंस्ट करप्शन संस्था द्वारा दायर याचिका पर राजस्थान उच्च न्यायालय ने राजकॉम्प के अंतर्गत लीगल मैट्रोलॉजी और ई.पी.डी.एस प्रोजेक्ट में हुए करोड़ों रुपए के फर्जीवाड़े के मामलों में कार्रवाई न करने पर अधिकारियों को नोटिस जारी किया है।


याचिकाकर्ता संस्था के वकील पूनम चंद भण्डारी ने बताया कि राजकॉम्प के अधिकारियों, जैसे आर.सी. शर्मा, तपन कुमार और कोशल सुरेश गुप्ता ने मिलकर लीगल मैट्रोलॉजी और ईपीडीएस प्रोजेक्ट्स में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी की। इन अधिकारियों ने अपनी पसंदीदा कंपनियों को करोड़ों रुपए का लाभ पहुंचाया। लीगल मैट्रोलॉजी प्रोजेक्ट में दो व्यक्तियों को 2020 तक प्रति माह लगभग 3 लाख रुपए पर नियुक्त किया गया था, जिन्हें आर.सी. शर्मा ने बार-बार व्हाइटनर लगाकर मार्च 2022 तक बढ़ाया।


इसी तरह, ईपीडीएस प्रोजेक्ट में पॉइंट ऑफ सेल मशीनों की खरीद और रखरखाव का कार्य उदयपुर जिले में लिंकवेल नामक कंपनी को सौंपा गया। इस कंपनी ने जिला रसद अधिकारी उदयपुर के फर्जी हस्ताक्षर से कार्य पूर्णता का प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर वर्षों तक करोड़ों रुपए का भुगतान प्राप्त किया। सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, डीएसओ ने ऐसे किसी भी प्रमाण पत्र को जारी करने से इनकार किया। इसी प्रकार, टोंक जिले का कार्य एनालॉजिक्स नामक कंपनी को दिया गया, जिसने भी टोंक जिले के अधिकारियों के फर्जी हस्ताक्षरों से करोड़ों रुपए उठाए।


पब्लिक अगेंस्ट करप्शन संस्था के आजीवन सदस्य डॉ. टी.एन. शर्मा ने इन मामलों पर एसीबी में कई बार शिकायतें की, लेकिन एसीबी ने इन गंभीर मामलों में कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बजाय, भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 17-ए के तहत जांच की स्वीकृति के लिए भेज दिया गया, जिससे मामला अटका रहा। भण्डारी ने बताया कि इस प्रकार के मामलों में धारा 17-ए लागू नहीं होती है, क्योंकि यह केवल नीति निर्णय पर लागू होती है। ऐसे मामलों में तुरंत एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई होनी चाहिए।


राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर खंड पीठ के न्यायाधीश माननीय श्री आनन्द शर्मा ने कार्मिक विभाग के सचिव, सूचना प्रौद्योगिकी और संचार विभाग के सचिव एवं भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के महानिदेशक को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।