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योगी आदित्यनाथ ने काकोरी ट्रेन एक्शन के नायक को किया नमन

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने काकोरी ट्रेन एक्शन के नायक राजेंद्रनाथ लाहिड़ी की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि दी। उन्होंने लाहिड़ी के बलिदान को राष्ट्र की अमिट धरोहर बताया और कहा कि यह हमें देशभक्ति का मार्ग दिखाता है। लाहिड़ी का जन्म 1901 में हुआ था और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। काकोरी कांड के तहत उन्हें फांसी की सजा दी गई थी। इस लेख में उनके जीवन और बलिदान के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है।
 

राजेंद्रनाथ लाहिड़ी की जयंती पर श्रद्धांजलि

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को लखनऊ में काकोरी ट्रेन एक्शन के प्रमुख नायक राजेंद्रनाथ लाहिड़ी की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि लाहिड़ी का बलिदान देश की अमिट धरोहर है।


योगी आदित्यनाथ ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर एक संदेश में लिखा, 'काकोरी ट्रेन एक्शन के महान क्रांतिकारी राजेंद्रनाथ लाहिड़ी की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन!' उन्होंने आगे कहा, 'आपका बलिदान हमें हमेशा देशभक्ति और कर्तव्यनिष्ठा का मार्ग दिखाता रहेगा।'


राजेंद्रनाथ लाहिड़ी का जन्म 29 जून 1901 को बंगाल के पावना जिले के मोहनपुर गांव में हुआ था। परिस्थितियों के चलते, वह केवल नौ वर्ष की आयु में अपने मामा के घर वाराणसी आ गए। उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की।


उस समय वाराणसी क्रांतिकारी गतिविधियों का एक प्रमुख केंद्र था। अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ाई के लिए, लाहिड़ी ने पं. राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां के साथ मिलकर 9 अगस्त 1925 को काकोरी रेलवे स्टेशन पर एक ट्रेन पर धावा बोलकर सरकारी खजाना लूट लिया।


इस लूट का उद्देश्य हथियार खरीदने के लिए पैसे इकट्ठा करना था, ताकि अंग्रेजों के खिलाफ उनका उपयोग किया जा सके। अंग्रेजों ने इसे डकैती करार दिया और इसमें शामिल क्रांतिकारियों को अपराधी माना।


इस घटना को इतिहास में 'काकोरी कांड' के नाम से जाना जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे 'काकोरी ट्रेन एक्शन' के रूप में पुनः नामित किया। इस मामले में चार क्रांतिकारियों, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां को फांसी की सजा सुनाई गई।


अंग्रेजी शासन ने सभी क्रांतिकारियों को विभिन्न जेलों में रखा, और राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को गोंडा जेल में रखा गया, जहां उन्हें 17 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई।