युवाओं की भूमिका: राष्ट्रीय सुरक्षा में नई दिशा
कर्नल सोफिया कुरैशी ने चाणक्य डिफेंस डायलॉग में युवाओं की राष्ट्रीय सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सुरक्षा केवल सीमाओं पर नहीं, बल्कि तकनीकी और नवाचार में भी निर्भर करती है। युवाओं को रक्षक बनकर देश की सुरक्षा में योगदान देने की आवश्यकता है। जानें कैसे युवा अपनी सोच और तकनीकी कौशल से राष्ट्रीय सुरक्षा को सशक्त बना सकते हैं।
Nov 1, 2025, 16:46 IST
युवाओं की भागीदारी और राष्ट्रीय सुरक्षा
भारतीय सेना के चाणक्य डिफेंस डायलॉग में कर्नल सोफिया कुरैशी ने युवा नेतृत्व, विशेषकर जेनरेशन Z, को संबोधित करते हुए कहा कि "राष्ट्रीय सुरक्षा केवल सीमाओं पर तैनात सैनिकों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह हर युवा भारतीय की साझा जिम्मेदारी होनी चाहिए।" उन्होंने हाल के सैन्य अभियानों जैसे ऑपरेशन सिंदूर से सीख लेते हुए बताया कि आज की युद्धकला तेजी से विकसित हो रही है— अब युद्ध केवल पारंपरिक हथियारों से नहीं, बल्कि ड्रोन, साइबर और इलेक्ट्रॉनिक तकनीक के माध्यम से लड़ा जा रहा है।
कर्नल कुरैशी ने युवाओं की भागीदारी को राष्ट्रीय सुरक्षा की नींव बताते हुए कहा कि भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में युवा न केवल सैनिक बन सकते हैं, बल्कि प्रौद्योगिकी, अनुसंधान, नीति और कूटनीति के क्षेत्र में भी सुरक्षा को मजबूत कर सकते हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि विश्व स्तर पर शांति स्थापना और संघर्ष प्रबंधन में युवाओं की भूमिका लगातार बढ़ रही है, और भारत को इस दिशा में नेतृत्व करना चाहिए।
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भारत की रक्षा अब केवल सीमाओं पर नहीं, बल्कि साइबर स्पेस, तकनीकी प्रयोगशालाओं, और युवा मनों की ऊर्जा में भी निर्भर करती है। कर्नल सोफिया कुरैशी का संदेश इस तथ्य को उजागर करता है कि आने वाले दशक में युद्ध का मैदान डिजिटल होगा और सैनिक की पहचान उसकी सोच, नवाचार और जागरूकता से तय होगी।
कर्नल कुरैशी की बातों में दो महत्वपूर्ण संदेश हैं— पहला, कि भारत की सुरक्षा व्यवस्था को जनसामान्य के सक्रिय सहयोग की आवश्यकता है; और दूसरा, कि युवाओं की रचनात्मक शक्ति को अब केवल सामाजिक अभियानों तक सीमित न रखकर राष्ट्र की सामरिक शक्ति में बदलना होगा। उन्होंने "ऑपरेशन सिंदूर" का उदाहरण दिया, जो आधुनिक युद्धकला का प्रतीक बन चुका है। यह अभियान सटीकता, प्रौद्योगिकी और बहुआयामी रणनीति के माध्यम से निर्णायक सफलता दिलाने वाला था। यही सोच 21वीं सदी के युद्ध को पारंपरिक संघर्ष से बौद्धिक और तकनीकी संघर्ष में बदल रही है।
आज भारत की लगभग 65% आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है, जो आने वाले वर्षों में न केवल देश की अर्थव्यवस्था बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे को भी आकार देगी। इस संदर्भ में कर्नल कुरैशी का यह कथन कि "हर युवा देश की पहली रक्षा पंक्ति है" केवल एक प्रेरक वाक्य नहीं, बल्कि एक नीति-सूत्र है। सुरक्षा अब ‘बंदूक की शक्ति’ से अधिक ‘बुद्धि की शक्ति’ पर निर्भर करती है। साइबर युद्ध, ड्रोन मिशन, डेटा-सुरक्षा, और सूचना अभियानों में वही देश आगे रहेगा, जिसके युवा तकनीकी रूप से सक्षम, राष्ट्रभक्त और रणनीतिक दृष्टि से सजग हों। यही कारण है कि कर्नल कुरैशी का यह संदेश राष्ट्रीय सुरक्षा की परिभाषा को लोकतांत्रिक दायरे में विस्तारित करता है। इसमें सैनिक के साथ-साथ नवप्रवर्तक, इंजीनियर, हैकर, वैज्ञानिक और नीति-निर्माता— सभी को समान भूमिका दी गई है।
यदि भारत अपने युवाओं की ऊर्जा को सही दिशा में साध ले, तो यह शक्ति केवल रोजगार या विकास का साधन नहीं, बल्कि एक सामरिक संपत्ति बन जाएगी। कर्नल कुरैशी की यह पुकार कि युवा केवल "दर्शक" न बनें, बल्कि "रक्षक" बनें, आज के समय की सबसे सशक्त राष्ट्रीय प्रेरणा है। कर्नल सोफिया कुरैशी ने स्पष्ट किया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा का भविष्य हथियारों से नहीं, विचारों से लिखा जाएगा। भारत के युवाओं को अब यह तय करना है कि वे उस भविष्य के निर्माता बनेंगे या दर्शक।