मोहन भागवत का संदेश: सामाजिक सद्भाव और एकता की आवश्यकता
हिंदू सम्मेलन में मोहन भागवत का संबोधन
संघ प्रमुख मोहन भागवत.
छत्तीसगढ़ के रायपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने जाति, धन या भाषा के आधार पर लोगों का मूल्यांकन न करने की बात कही। उन्होंने सोनपैरी गांव में आयोजित ‘हिंदू सम्मेलन’ में कहा कि सामाजिक सद्भाव की दिशा में पहला कदम भेदभाव और अलगाव की भावना को समाप्त करना है।
भागवत ने यह भी बताया कि हिंदू समुदाय को बांग्लादेश जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि समस्याओं पर चर्चा करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि हमें उनके समाधान की दिशा में भी आगे बढ़ना होगा। यदि हम सही दिशा में चलते रहें, तो कोई भी चुनौती हमें प्रभावित नहीं कर सकती।
आरएसएस की सौवीं सालगिरह का जश्न नहीं
उन्होंने यह स्पष्ट किया कि आरएसएस की सौवीं वर्षगांठ मनाने का कोई इरादा नहीं है। उनके अनुसार, 100 साल पूरे करना कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह महत्वपूर्ण है कि आरएसएस का कार्य, जो नागपुर में एक छोटी शाखा के रूप में शुरू हुआ था, आज पूरे देश में फैल चुका है।
संघ प्रमुख ने बताया कि आरएसएस के स्वयंसेवक देश के हर कोने में सक्रिय हैं, चाहे वह कश्मीर हो या मिजोरम। यह वृद्धि डॉ. हेडगेवार के संगठन निर्माण के प्रति समर्पण का परिणाम है।
सामाजिक कार्यों के माध्यम से एकता का प्रयास
मोहन भागवत ने सामाजिक सद्भाव, पर्यावरण की जिम्मेदारी और अनुशासित नागरिक जीवन की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे मतभेदों को भुलाकर समाज और देश के लिए मिलकर काम करें। उन्होंने कहा कि सभी धार्मिक स्थान और सार्वजनिक सुविधाएं सभी के लिए खुली होनी चाहिए।
उन्होंने नशे की समस्या पर भी विचार किया और कहा कि अकेलापन अक्सर लोगों को नशे की ओर ले जाता है। उन्होंने पारिवारिक मेलजोल को बढ़ावा देने के लिए एक दिन साथ बिताने, प्रार्थना करने और घर का बना खाना साझा करने की आवश्यकता पर बल दिया।