मोहन भागवत का संदेश: भारत का उद्देश्य 'विश्व को धर्म प्रदान करना'
आरएसएस प्रमुख का व्याख्यान बेंगलुरु में
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने बेंगलुरु में दो दिवसीय व्याख्यानमाला के दूसरे सत्र में हिंदू राष्ट्र के जीवन-लक्ष्य और संघ के भविष्य के उद्देश्यों पर चर्चा की। उन्होंने 'हिंदू राष्ट्र का जीवन-लक्ष्य क्या है?' विषय पर अपने विचार साझा करते हुए कहा कि स्वामी विवेकानंद के अनुसार, हर राष्ट्र का एक लक्ष्य होता है, और भारत का लक्ष्य 'विश्व को धर्म प्रदान करना' है।
धर्म का व्यापक अर्थ
भागवत ने बताया कि धर्म को अक्सर गलत तरीके से परिभाषित किया जाता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि 'रिलीजन' शब्द 'रिलीगियो' से आया है, जिसका अर्थ है बांधना, और यह ईश्वर तक पहुंचने के लिए क्रियाओं का समूह है। लेकिन धर्म का अर्थ इससे कहीं अधिक व्यापक है।
संतोष की कमी
उन्होंने धर्म को जीवन का अंतर्निहित स्वभाव, कर्तव्य, संतुलन और अनुशासन बताया। भागवत ने कहा कि भौतिक प्रगति के बावजूद, मानवता को सच्चा सुख नहीं मिला है। जीवन आसान हो गया है, लेकिन संतोष की कमी बनी हुई है।
संघर्ष और अशांति
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के बावजूद संघर्ष और अशांति जारी है। उन्होंने व्यक्तिवाद, सामाजिक विखंडन और पर्यावरणीय क्षरण के मुद्दों पर भी चर्चा की।
फिल्म 'द इलेवनथ ऑवर' का संदर्भ
उन्होंने पर्यावरण पर आधारित फिल्म 'द इलेवनथ ऑवर' का उल्लेख करते हुए कहा कि सभी की जरूरतें पूरी की जा सकती हैं, लेकिन सभी के लालच को संतुष्ट नहीं किया जा सकता। उन्होंने बताया कि मानवता द्वारा प्रकृति का शोषण अस्तित्व को खतरे में डाल रहा है।
धर्म का अर्थ
भागवत ने कहा कि भारत के प्राचीन ऋषियों ने तप के माध्यम से यह अनुभव किया कि परम सत्य भीतर है। उन्होंने कहा कि एकता का बोध व्यक्ति, समाज और प्रकृति को जोड़ता है। धर्म संतुलन और स्थायी सिद्धांत है जो परम सत्य की सभी अभिव्यक्तियों को एक करता है।
प्रकृति को लौटाना
उन्होंने राजा शिवि की कथा का हवाला देते हुए कहा कि मनुष्य का कर्तव्य है कि वह प्रकृति को कुछ वापस दे। धर्म का पालन आवश्यक है।
समाज के हर वर्ग तक पहुंचने की योजना
भागवत ने कहा कि आरएसएस का मिशन हिंदू राष्ट्र का विकास है। उन्होंने संगठन की योजना का उल्लेख किया, जिसमें हर वर्ग और गांव तक पहुंचने का लक्ष्य है।
कमजोर वर्गों का समर्थन
उन्होंने संघ की सद्भावना पहलों पर जोर देते हुए कहा कि जाति और समुदाय के नेता मिलकर काम करें, ताकि कमजोर वर्गों का समर्थन किया जा सके।
संघ का काम अधूरा
भागवत ने कहा कि संघ का काम 100 साल बाद भी अधूरा है। उन्होंने कहा कि समाज के उत्थान के लिए सभी को एकजुट होना होगा।