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मोहन भागवत का विजयदशमी भाषण: स्वदेशी पर जोर और अमेरिका की टैरिफ नीति की आलोचना

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने विजयदशमी के अवसर पर अपने भाषण में अमेरिका की टैरिफ नीति की आलोचना की और स्वदेशी पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि दुनिया भारत की ओर देख रही है और हमें आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। भागवत ने महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को भी याद किया, उनके योगदान और समर्पण की सराहना की। जानें उनके विचार और संदेश के बारे में अधिक जानकारी।
 

आरएसएस प्रमुख का विजयदशमी संदेश

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को नागपुर में विजयदशमी के अवसर पर अपने भाषण में अमेरिका की टैरिफ नीति की कड़ी आलोचना की। उन्होंने स्वदेशी पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता पर जोर दिया। भागवत ने कहा कि अमेरिका की नई टैरिफ नीति उनके स्वार्थों को ध्यान में रखकर बनाई गई है, लेकिन इसका प्रभाव सभी देशों पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि दुनिया एक-दूसरे पर निर्भर है और कोई भी देश अकेला नहीं रह सकता। यह निर्भरता मजबूरी में नहीं बदलनी चाहिए, इसलिए हमें आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और अपने मित्र देशों के साथ राजनयिक संबंध बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।


 


विजयदशमी पर भागवत का संदेश


मोहन भागवत ने कहा कि वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए दुनिया भारत की ओर देख रही है। उन्होंने भारत की विविधता की सराहना की और कहा कि इसे भिन्नता में बदलने के प्रयास किए जा रहे हैं। भागवत ने यह भी कहा कि जब विदेशी विचारधाराएँ भारत में आईं, तो हमने उन्हें अपनाया। उन्होंने सभी से अपील की कि किसी भी आस्था या विश्वास का अपमान न हो।


 


भागवत ने यह भी कहा कि समाज में विभिन्न मान्यताओं वाले लोग एक साथ रहते हैं, जिससे कभी-कभी शोर और अराजकता उत्पन्न हो सकती है। लेकिन यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि कानूनों का पालन हो और सद्भाव बना रहे। उन्होंने हिंसा और गुंडागर्दी को गलत बताया और कहा कि किसी विशेष समुदाय को भड़काने का प्रयास पूर्व नियोजित षड्यंत्र है।


 


आरएसएस प्रमुख ने महात्मा गांधी को उनकी जयंती पर याद किया और कहा कि वे स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी थे। भागवत ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को भी श्रद्धांजलि दी और उनके राष्ट्र के प्रति समर्पण की सराहना की। उन्होंने कहा, "शास्त्री जी सादगी और सत्यनिष्ठा के प्रतीक थे और उन्होंने राष्ट्र के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।"