मोहन भागवत का बयान: आरएसएस की कानूनी स्थिति पर उठे सवाल
आरएसएस प्रमुख का प्रश्नोत्तर सत्र
बेंगलुरु में आयोजित '100 इयर्स ऑफ संघ जर्नी: न्यू होराइजन्स' कार्यक्रम के दूसरे दिन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने एक प्रश्नोत्तर सत्र में भाग लिया। जब उनसे आरएसएस की कानूनी मान्यता और पंजीकरण के बारे में सवाल किया गया, तो उन्होंने बताया कि यह मुद्दा कई बार उठ चुका है और संघ ने हमेशा स्पष्ट उत्तर दिया है।
कांग्रेस के आरोपों का जवाब
मोहन भागवत ने कांग्रेस नेताओं के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि संघ किसी संस्था के रूप में पंजीकृत नहीं है, बल्कि यह 'व्यक्तियों का समूह' है, जिसे देश की संस्थाओं द्वारा मान्यता प्राप्त है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, 'कई चीजें बिना पंजीकरण के भी मौजूद हैं, जैसे कि हिंदू धर्म भी पंजीकृत नहीं है।'
आरएसएस की स्थापना का इतिहास
उन्होंने बताया कि आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई थी, जब देश ब्रिटिश शासन के अधीन था। भागवत ने सवाल किया, 'क्या आप चाहते हैं कि हम उस समय अंग्रेजों की सरकार के साथ पंजीकरण करवाते?'
खड़गे का आरएसएस पर हमला
यह बयान तब आया जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने हाल ही में आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने की बात की थी। उनके बेटे प्रियांक खड़गे ने सरकारी संस्थानों और सार्वजनिक स्थलों पर आरएसएस की गतिविधियों पर रोक लगाने की मांग की थी।
सरकार और अदालतों द्वारा मान्यता
भागवत ने कहा कि आजादी के बाद भारत सरकार ने संगठनों के लिए पंजीकरण को अनिवार्य नहीं किया। उन्होंने यह भी बताया कि आयकर विभाग और अदालतों ने आरएसएस को व्यक्तियों के समूह के रूप में मान्यता दी है और संघ को आयकर से छूट प्राप्त है।
तिरंगे के प्रति सम्मान
राष्ट्रीय ध्वज के संबंध में उठे सवालों पर भागवत ने कहा कि आरएसएस में भगवा ध्वज को 'गुरु' का स्थान दिया गया है, लेकिन संगठन भारतीय तिरंगे का गहरा सम्मान करता है। उन्होंने कहा, 'हम तिरंगे का आदर करते हैं, उसे नमन करते हैं और उसकी रक्षा करते हैं।'
संविधान के दायरे में कार्य
भागवत ने यह भी स्पष्ट किया कि आरएसएस संविधान के भीतर रहकर कार्य करता है। उन्होंने कहा, 'हम कोई असंवैधानिक संगठन नहीं हैं। हम कानूनी रूप से मान्य संस्था हैं, इसलिए पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है।'