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मोहन भागवत का 75 वर्ष के बाद सेवा से संन्यास का सुझाव: राजनीतिक निहितार्थ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने 75 वर्ष की आयु के बाद सेवा कार्यों से संन्यास लेने की सलाह दी है, जो भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण निहितार्थ रखता है। यह बयान भाजपा के नेतृत्व परिवर्तन और प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक संकेत हो सकता है। जानें इस बयान के पीछे की रणनीति और विपक्ष की प्रतिक्रिया।
 

मोहन भागवत का महत्वपूर्ण बयान

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में यह सलाह दी कि 75 वर्ष की आयु के बाद व्यक्ति को सेवा कार्यों से स्वेच्छा से संन्यास ले लेना चाहिए। यह केवल एक सामान्य नैतिक उपदेश नहीं है, बल्कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में इसके गहरे निहितार्थ हैं, जो भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे वरिष्ठ नेताओं के संदर्भ में महत्वपूर्ण संदेश देते हैं। यह बयान तब आया है जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि अगर सब कुछ ठीक रहा, तो वह अगस्त 2027 में सेवानिवृत्त होंगे, और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा कि रिटायरमेंट के बाद वे वेद, उपनिषद और प्राकृतिक खेती में समय बिताएंगे।


मोदी की उम्र और भाजपा की परंपरा

मोहन भागवत का यह बयान तब आया है जब प्रधानमंत्री मोदी 74 वर्ष के हो चुके हैं और इस साल 17 सितंबर को 75 वर्ष के होंगे। भाजपा की आंतरिक परंपरा के अनुसार, 75 वर्ष की उम्र को सक्रिय राजनीति से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की लक्ष्मण रेखा माना जाता है। इस परंपरा के तहत कई वरिष्ठ नेता जैसे लालकृष्ण आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी को मार्गदर्शक मंडल में भेजा गया था। हालांकि, मोदी और अमित शाह जैसे नेताओं के मामले में यह परंपरा लचीली नजर आती है।


भविष्य के नेतृत्व परिवर्तन के संकेत

मोहन भागवत के बयान को भाजपा के भविष्य के नेतृत्व परिवर्तन के संकेत के रूप में भी देखा जा रहा है। यह बयान उस रणनीति की ओर इशारा कर सकता है जिसमें 2029 से पहले भाजपा में युवा नेतृत्व को आगे लाने की कोशिशें शुरू हों। यह संभव है कि भागवत का संदेश प्रधानमंत्री मोदी के लिए व्यक्तिगत रूप से भी एक संकेत हो, जिसमें उन्हें यह याद दिलाया जा रहा हो कि यदि उन्होंने वरिष्ठ नेताओं को 75 वर्ष के बाद सेवानिवृत्त करने की परंपरा स्थापित की है, तो उन्हें भी इसका पालन करना चाहिए।


संघ की भूमिका और नेतृत्व की सीमाएं

यह वक्तव्य संघ की उस भूमिका की पुनः पुष्टि भी करता है, जिसमें वह भाजपा को वैचारिक दिशा देने वाला मार्गदर्शक बना रहता है। भागवत का यह बयान संघ के मूल सिद्धांत—निस्वार्थ सेवा और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा पर संयम—की ओर लौटने का आह्वान भी हो सकता है।


विपक्ष की प्रतिक्रिया

विपक्ष ने भी इस बयान पर तंज कसा है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर लिखा कि प्रधानमंत्री को यह याद दिलाया गया है कि 17 सितंबर 2025 को वे 75 साल के हो जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री सरसंघचालक से कह सकते हैं कि वे भी 11 सितंबर 2025 को 75 के हो जाएंगे।


भविष्य की दिशा

मोहन भागवत का 75 वर्ष की उम्र में रिटायरमेंट का सुझाव भारतीय राजनीति के भविष्य की रूपरेखा में एक महत्वपूर्ण संकेत हो सकता है। यह न केवल भाजपा के नेतृत्व परिवर्तन की संभावना को जन्म देता है, बल्कि राजनीति में वैचारिक मर्यादा और उत्तरदायित्व के प्रश्न को भी पुनर्जीवित करता है। आने वाले वर्षों में यह स्पष्ट होगा कि यह बयान केवल विचार था या सत्ता के गलियारों में एक नई दिशा देने वाला संकेत।