मोसाद का अद्भुत ऑपरेशन: मिग-21 की चोरी की कहानी
मोसाद का खुफिया मिशन
यरूशलेम: दुनिया की सबसे खतरनाक खुफिया एजेंसी मोसाद इतनी चतुराई से कार्य करती है कि दुश्मन को यह तो पता होता है कि उसके साथ क्या हुआ, लेकिन इसे साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं मिलते। 1960 के दशक में एक ऐसा ही मिशन संचालित किया गया था, जिसमें रूस का एक अत्याधुनिक हथियार चुराया गया था। यह मिशन मोसाद ने केवल अपने आनंद के लिए और दुनिया में आतंक फैलाने के उद्देश्य से किया था।
मिग-21 का खौफ
वास्तव में, 60 के दशक में कई शक्तिशाली देशों के लिए मिग-21 नामक यह हथियार एक डर का कारण था। यह विमान सोवियत संघ द्वारा विकसित किया गया था, जो लड़ाकू विमान मिग-19 का उन्नत संस्करण था। मिग-21 को मिस्र, लेबनान और ईराक जैसे देशों को भी बेचा गया था। इजरायल को इस हथियार के कारण लगातार धमकियां मिल रही थीं, जिससे मोसाद ने इसे चुराने का निर्णय लिया।
ऑपरेशन डायमंड की योजना
1963 में मोसाद के प्रमुख मीर एमिट ने अपने अधिकारियों से पूछा कि ऐसा क्या किया जाए जो उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि बन सके। सभी ने एक स्वर में मिग-21 का नाम लिया। इसके बाद यह तय हुआ कि इसे चुराने के लिए 'ऑपरेशन डायमंड' का आयोजन किया जाएगा।
चोरी की कोशिशें
इस ऑपरेशन की पहली दो कोशिशें असफल रहीं, लेकिन मोसाद ने अपनी चतुराई का इस्तेमाल करते हुए तय किया कि वे उन देशों से चोरी करेंगे, जिन्हें रूस यह विमान बेच रहा था। इसके बाद ईराक को लक्ष्य बनाया गया और इस मिशन के लिए एक महिला जासूस को भेजा गया।
सफलता की कहानी
इस बीच, मुनीर रेड्फा नामक एक ईराकी पायलट ने मोसाद के संपर्क में आया, जो सरकारी नीतियों से निराश था। प्रमोशन और वेतन की कमी से परेशान होकर, उसे मोसाद की महिला जासूस ने 10 लाख डॉलर का वादा किया। इसके साथ ही उसे सरकारी नौकरी और परिवार को इजरायल में घर देने का आश्वासन दिया गया। वह तैयार हो गया और 16 अगस्त 1966 को मोसाद ने मिग-21 को सफलतापूर्वक चुरा लिया, जिससे 'ऑपरेशन डायमंड' सफल हुआ।