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मोदी का चीन दौरा: शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन में भागीदारी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले सप्ताह चीन के तियानजिन में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भाग लेने जा रहे हैं। यह उनका सात वर्षों में पहला दौरा है, जो भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक अवसर है। इस सम्मेलन में मोदी के साथ राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी शामिल होंगे। यह सम्मेलन भारत-चीन संबंधों में सुधार के प्रयासों के बीच हो रहा है, और इसे वैश्विक दक्षिण की एकता का प्रतीक माना जा रहा है। क्या यह सम्मेलन भारत और चीन के बीच विश्वास बहाल करने का एक अवसर बनेगा? जानें पूरी जानकारी में।
 

मोदी का ऐतिहासिक दौरा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले सप्ताह चीन के तियानजिन शहर में होने वाले 25वें शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भाग लेने जा रहे हैं। यह उनका सात वर्षों में पहला चीन दौरा है और इसे बदलती वैश्विक परिस्थितियों और क्षेत्रीय चुनौतियों के बीच भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक अवसर माना जा रहा है।


सम्मेलन की तिथियाँ और आमंत्रण

यह दौरा 31 अगस्त और 1 सितंबर को निर्धारित किया गया है। विदेश मंत्रालय के सचिव (पश्चिम) तनमय लाल ने मंगलवार को एक विशेष प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी इस सम्मेलन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के निमंत्रण पर भाग लेंगे और संभवतः कुछ द्विपक्षीय वार्ताएँ भी करेंगे, हालांकि उनके विवरण अभी तक साझा नहीं किए गए हैं।


वैश्विक दक्षिण की एकता का प्रतीक

यह सम्मेलन चीन के लिए कई रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने का एक साधन माना जा रहा है। इसमें वैश्विक दक्षिण देशों की एकता को प्रदर्शित करना, रूस को एक मंच प्रदान करना और बीजिंग की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय भूमिका को उजागर करना शामिल है।


भारत-चीन संबंधों में नई शुरुआत

यह शिखर सम्मेलन भारत के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह 2020 की सीमा संघर्षों के बाद भारत-चीन संबंधों में सुधार के प्रयासों के बीच हो रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह सम्मेलन विश्वास बहाल करने के लिए छोटे कदम उठाने का उपयुक्त अवसर हो सकता है।


नई बहु-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था

तियानजिन में होने वाला यह सम्मेलन एशिया में बढ़ती रणनीतिक प्रतिस्पर्धा और वैश्विक दक्षिण की सक्रिय भूमिका के बीच एक नई बहु-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था का प्रतीक बन सकता है, जिसमें भारत की भूमिका और भी अधिक प्रभावशाली और जटिल होती जा रही है।