मेजर धीरेंद्र सिंह: 1965 के युद्ध की वीरता की अनकही कहानी
मेजर धीरेंद्र सिंह की वीरता की कहानी
मेजर धीरेंद्र सिंह
लखनऊ की 77 वर्षीय विजय कुमारी के लिए सितंबर का महीना गर्व और यादों से भरा हुआ है। उनके पति, मेजर धीरेंद्र सिंह, को 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में वीर चक्र से सम्मानित किया गया था। उस समय, जब वह केवल 25 वर्ष के थे, दुश्मन की बारूदी सुरंग के विस्फोट से उनका पैर गंभीर रूप से घायल हो गया, जिसके कारण उसे काटना पड़ा।
हालांकि, उन्होंने साहस नहीं छोड़ा और दुश्मन की तोपों को चुप करा दिया। इस अद्वितीय साहस के लिए उन्हें देश का तीसरा सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार, वीर चक्र, प्रदान किया गया। विजय कुमारी बताती हैं कि उस समय संचार के साधन सीमित थे, और उन्हें अपने पति की चोट के बारे में एक पत्र के माध्यम से जानकारी मिली थी। 23 सितंबर 1965 को, जब वह गोरखपुर में अपने माता-पिता के पास थीं, तब कुमाऊं रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर का एक पत्र उनके ससुराल पहुंचा, जिसमें इस घटना की जानकारी दी गई थी।
युद्ध के बाद का जीवन
युद्ध के बाद मेजर धीरेंद्र सिंह का जीवन पूरी तरह से बदल गया। 1966 में उन्हें एक आर्टिफिशियल पैर मिला और उनकी पोस्टिंग लखनऊ में कर दी गई। हालांकि, 1971 में उन्हें मेडिकल रूप से अयोग्य घोषित कर दिया गया और सेना छोड़नी पड़ी। फिर भी, उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपने बच्चों को हमेशा प्रेरित किया। उनका सपना था कि उनका बेटा सेना में सेवा करे, और जब वह पासिंग आउट परेड में पहुंचे, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
साहस की विरासत
विजय कुमारी कहती हैं कि उनके पति मानसिक रूप से बहुत मजबूत थे। आर्टिफिशियल पैर के बावजूद, वह स्कूटर, कार और ट्रैक्टर चलाते थे। उनका मानना था कि कठिनाइयों के सामने झुकना नहीं चाहिए। अप्रैल 2025 में जब मेजर सिंह का दिल्ली में निधन हुआ, तो विजय कुमारी के लिए यह एक कठिन समय था, लेकिन उनकी वीरता और साहस हमेशा उनके परिवार के लिए प्रेरणा बने रहेंगे।