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मेघालय उच्च न्यायालय ने भाषाई अल्पसंख्यकों के विकास पर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया

मेघालय उच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वे 2016 में भाषाई अल्पसंख्यक आयुक्त द्वारा की गई सिफारिशों के कार्यान्वयन की स्थिति पर रिपोर्ट पेश करें। इस मामले की सुनवाई मेघालय भाषाई अल्पसंख्यक विकास मंच द्वारा दायर जनहित याचिका पर की गई। अदालत ने भाषाई कल्याण बोर्ड गठित करने की भी सिफारिश की है। जानें इस महत्वपूर्ण आदेश के बारे में और क्या कदम उठाए जाएंगे।
 

भाषाई अल्पसंख्यकों के विकास पर सुनवाई

मेघालय उच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वे यह स्पष्ट करें कि 2016 में भाषाई अल्पसंख्यक आयुक्त द्वारा की गई सिफारिशों को लागू किया गया है या नहीं, जो इस पूर्वोत्तर राज्य में भाषाई अल्पसंख्यकों के विकास और कल्याण से संबंधित हैं।


इस मामले की सुनवाई मेघालय भाषाई अल्पसंख्यक विकास मंच द्वारा दायर जनहित याचिका पर की गई, जिसमें अदालत ने कहा कि खासी और गारो भाषी लोगों की संख्या अधिक है, लेकिन बंगाली, नेपाली, हिंदी, असमिया और अन्य भाषाएं बोलने वाले लोगों की भी एक बड़ी संख्या है।


भाषाई अल्पसंख्यक आयुक्त ने 2016 में सिफारिश की थी कि आधिकारिक दस्तावेजों का अनुवाद अल्पसंख्यक भाषाओं में किया जाए, स्कूलों में वरीयता रजिस्टर बनाए जाएं और अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को आधिकारिक मान्यता एवं समर्थन दिया जाए।


मुख्य न्यायाधीश आई पी मुखर्जी और न्यायमूर्ति डब्ल्यू डिएंगदोह की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने केंद्र और राज्य दोनों को 10 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई से पहले रिपोर्ट की स्थिति स्पष्ट करने का आदेश दिया।


आदेश में कहा गया है, 'हम भारत सरकार और राज्य के अनुभवी अधिवक्ताओं को 29 मार्च, 2016 की आयुक्त की रिपोर्ट की स्थिति के संबंध में उचित निर्देश लेने का आदेश देते हैं।'


सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत से राज्य सरकार को भाषाई कल्याण बोर्ड गठित करने का निर्देश देने का आग्रह किया, जो 2016 में की गई सिफारिशों में से एक थी।


सरकार के वकील ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि भाषाई अल्पसंख्यकों के आयुक्त के पास पूर्ण अधिकार नहीं है और रिपोर्ट की जांच भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जानी चाहिए तथा इसे संसद द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।