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मुंबई चुनाव 2026: परिवारवाद पर उठे सवाल, नेताओं के परिवारों को 40% टिकट

मुंबई महानगरपालिका चुनाव 2026 में परिवारवाद एक प्रमुख मुद्दा बन गया है, जहां विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने नेताओं के परिवारों को 40% टिकट दिए हैं। इससे जमीनी कार्यकर्ताओं में नाराजगी बढ़ रही है, और कई स्थानों पर विरोध की घटनाएं सामने आ रही हैं। भाजपा, कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना सभी में परिवारवाद की समान स्थिति है। क्या यह नाराजगी चुनावी नतीजों पर असर डालेगी? जानें पूरी कहानी में।
 

परिवारवाद का मुद्दा

महाविकास अघाड़ी और महायुति के नेता

मुंबई महानगरपालिका चुनावों से पहले, प्रमुख राजनीतिक दलों में परिवारवाद को लेकर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। विभिन्न दलों द्वारा घोषित उम्मीदवारों की सूचियों में नेताओं के परिवारों को बड़ी संख्या में टिकट दिए जाने से जमीनी कार्यकर्ताओं में नाराजगी बढ़ गई है। कई स्थानों पर कार्यकर्ताओं के विरोध के कारण नेताओं को अपने परिवार के सदस्यों का नामांकन वापस लेना पड़ा है।

सूत्रों के अनुसार, अब तक विभिन्न दलों द्वारा घोषित सीटों में से लगभग 40 प्रतिशत टिकट नेताओं के परिवारों को दिए गए हैं। इसका मतलब है कि मुंबई के 227 वार्डों में से लगभग हर तीसरे वार्ड में एक उम्मीदवार किसी न किसी राजनीतिक परिवार से संबंधित है। यह स्थिति केवल एक पार्टी तक सीमित नहीं है, बल्कि भाजपा, कांग्रेस, शिंदे शिवसेना, यूबीटी शिवसेना और एनसीपी सभी में समान है।


भाजपा में परिवारवाद की चर्चा

भाजपा में परिवारवाद पर सबसे ज्यादा चर्चा

भारतीय जनता पार्टी, जो अक्सर कांग्रेस पर परिवारवाद के आरोप लगाती रही है, अब खुद इसी विवाद में फंस गई है। टिकट वितरण में कोलाबा विधानसभा सीट पर नार्वेकर परिवार का दबदबा स्पष्ट है। दक्षिण मुंबई की इस प्रमुख सीट में कुल 6 नगरसेवक वार्ड हैं, जिनमें से 3 वार्डों में केवल नार्वेकर परिवार के उम्मीदवार हैं।

  • वार्ड 225: हर्षिता नार्वेकर (बीजेपी उम्मीदवार, राहुल नार्वेकर की भाभी)
  • वार्ड 226: मकरंद नार्वेकर (बीजेपी उम्मीदवार, राहुल नार्वेकर के भाई)
  • वार्ड 227: गौरवी नार्वेकर (चचेरी बहन)

ये सभी उम्मीदवार महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर के करीबी रिश्तेदार हैं। नामांकन के समय नार्वेकर परिवार के सभी सदस्य रथ, ढोल-नगाड़ों और सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ मौजूद थे, जिसकी तस्वीरें और वीडियो चुनावी चर्चा का केंद्र बन गए।


परिवार की सफाई

परिवार की सफाई

टीवी9 भारतवर्ष से बातचीत में हर्षिता नार्वेकर ने कहा कि परिवारवाद का आरोप लगाना विरोधियों का काम है। अगर परिवार में सक्षम लोग हैं तो उन्हें राजनीति में आने से क्यों रोका जाए? मैं पिछले 10 वर्षों से सक्रिय नगरसेवक रही हूं और कोलाबा के लिए लगातार काम किया है।

गौरवी नार्वेकर ने कहा कि हम कार्यकर्ता हैं, परिवारवाद जैसी कोई बात नहीं है। विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने भी कहा कि परिवारवाद का आरोप गलत है। सभी को टिकट मेरिट के आधार पर मिला है। यह कहना कि इन्हें टिकट मेरे कारण मिला, पूरी तरह बेबुनियाद है।


अन्य दलों में भी परिवारवाद

एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना में भी वही तस्वीर

एनसीपी के अजित पवार गुट ने कुर्ला से बुशरा खान, सईदा मलिक और कप्तान मलिक को टिकट दिए हैं। जब मीडिया चैनल ने प्रदेश अध्यक्ष सुनील तटकरे से नवाब मलिक परिवार को कई टिकट देने पर सवाल पूछा, तो उन्होंने आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि ये सभी चुनकर आए हुए जनप्रतिनिधि हैं और परिवारवाद का आरोप गलत है।

कांग्रेस में भी परिवारवाद

कांग्रेस पार्टी ने कलानी से मोहम्मद अशरफ आजमी और समन अरशद आजमी को टिकट दिया है। मानखुर्द से सुफियान नियाज वानु और उनकी पत्नी आएशा सुफियान वानु को सायन-कोलीवाड़ा से टिकट दिया गया है। अंधेरी वेस्ट से कांग्रेस महासचिव मोहसिन हैदर की पत्नी सूफियाना हैदर चुनाव लड़ रही हैं।


शिवसेना का भी परिवारवाद

शिवसेना भी आरोप से अछूती नहीं

शिवसेना विधायक प्रकाश सुर्वे के बेटे राज सुर्वे चुनावी मैदान में हैं। सांसद रवींद्र वायकर की बेटी को जोगेश्वरी से टिकट दिया गया है। वहीं, शिवसेना यूबीटी ने विधायक हारून खान की बेटी सना खान को वर्सोवा से टिकट दिया है।

जोगेश्वरी से विधायक बाला नर के करीबी रिश्तेदारों को चुनाव लड़ाया जा रहा है। दिंडोशी से विधायक सुनील प्रभु के करीबी लोगों को तीन टिकट दिए गए हैं।


कार्यकर्ताओं की नाराजगी

कार्यकर्ता बोले- कोई गॉड फादर नहीं, इसलिए नहीं मिला टिकट

मातोश्री के बाहर टिकट के इंतजार में खड़े कार्यकर्ताओं ने कहा कि उनके पास कोई गॉड फादर नहीं है, इसलिए उन्हें टिकट नहीं मिल रहा।

मुंबई महानगरपालिका चुनाव में यह स्पष्ट हो रहा है कि परिवारवाद हर पार्टी की रणनीति का हिस्सा बन चुका है। जमीनी कार्यकर्ता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। यही वजह है कि कई स्थानों पर बगावत, विरोध और नामांकन वापसी जैसी घटनाएं सामने आ रही हैं। अब बड़ा सवाल यह है कि क्या परिवारवाद के खिलाफ उठ रही यह नाराजगी चुनावी नतीजों में भी दिखाई देगी, या फिर पार्टियों की पारंपरिक वोट-बैंक राजनीति एक बार फिर भारी पड़ेगी?