मिस्र का कूटनीतिक कदम: 21 मुस्लिम देशों का साझा बयान
इजराइल-ईरान संघर्ष में मिस्र की भूमिका
इजराइल और ईरान के बीच चल रहे संघर्ष को अब पांच दिन हो चुके हैं। इस दौरान मिसाइलों की आवाजें और धमाकों की गूंज सुनाई दे रही है, जिससे पूरा मध्य पूर्व चिंतित है। लेकिन इस हड़कंप के बीच, मिस्र ने चुपचाप एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम उठाया है। जबकि तुर्की और पाकिस्तान सुर्खियों में हैं, मिस्र ने 21 मुस्लिम देशों को एकजुट कर एक ऐसा कदम उठाया है जो उसे क्षेत्रीय कूटनीति में प्रमुखता दिला सकता है।
साझा बयान का महत्व
13 जून से ईरान पर इजराइली हमलों की निंदा करते हुए, मिस्र ने 21 मुस्लिम देशों का एक साझा बयान जारी किया है। इस बयान को तैयार करने के लिए मिस्र के विदेश मंत्री बद्र अब्देलअत्ती ने इन देशों के विदेश मंत्रियों से बातचीत की। इस सूची में अल्जीरिया, बहरीन, ब्रुनेई, चाड, कोमोरोस, जिबूती, गांबिया, इराक, जॉर्डन, कुवैत, लीबिया, मॉरिटानिया, पाकिस्तान, क़तर, सऊदी अरब, सोमालिया, सूडान, तुर्किए, ओमान और यूएई शामिल हैं।
संप्रभुता और कानून का पालन
बयान में यह स्पष्ट किया गया है कि सभी देशों की संप्रभुता का सम्मान होना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय कानून तथा संयुक्त राष्ट्र चार्टर का पालन आवश्यक है। ईरान पर हमलों को खतरनाक उकसावे के रूप में देखा गया है, जिससे पश्चिम एशिया में अस्थिरता का खतरा बढ़ गया है।
परमाणु मुक्त क्षेत्र की मांग
साझा बयान में सभी देशों ने एक महत्वपूर्ण मांग उठाई है कि मध्य पूर्व को परमाणु और अन्य विनाशकारी हथियारों से मुक्त क्षेत्र घोषित किया जाए। इसके साथ ही, सभी देशों को परमाणु अप्रसार संधि (NPT) से जुड़ने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।
संवाद का महत्व
बयान में यह भी कहा गया है कि सैन्य हमलों से कोई स्थायी समाधान नहीं निकलेगा। केवल बातचीत और कूटनीति ही इस संकट का समाधान कर सकती है। इसके अलावा, समुद्री रास्तों की सुरक्षा और नेविगेशन की स्वतंत्रता बनाए रखने की अपील की गई है। 21 देशों की यह एकजुटता दर्शाती है कि इजराइल-ईरान विवाद अब केवल दो देशों तक सीमित नहीं रह गया है।