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महिलाओं के लिए मंदिर में खुले बाल रखने के नियम और उनके पीछे की वजहें

हिंदू धर्म में महिलाओं के लिए मंदिर में जाने के कई नियम हैं, जिनमें खुले बालों के साथ प्रवेश न करना शामिल है। यह माना जाता है कि खुले बाल नकारात्मकता का प्रतीक होते हैं और पूजा के समय मन को शांत रखना आवश्यक है। जानें इसके पीछे के धार्मिक और ज्योतिषीय कारणों के बारे में, और क्यों इसे ईश्वर का अपमान भी माना जाता है।
 

मंदिर में जाने के नियम


हिंदू धर्म में मंदिर जाने के लिए कई नियम निर्धारित किए गए हैं। शास्त्रों में महिलाओं के लिए भी कुछ विशेष निर्देश दिए गए हैं। उदाहरण के लिए, मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को मंदिर में जाने से मना किया गया है। इसी तरह, यह भी कहा गया है कि महिलाओं को खुले बालों के साथ मंदिर में नहीं जाना चाहिए। लेकिन इसके पीछे क्या कारण है?


खुले बालों के साथ मंदिर में न जाना


शास्त्रों के अनुसार, महिलाओं को खुले बालों के साथ न तो मंदिर में जाना चाहिए और न ही पूजा करनी चाहिए। इसका कारण यह है कि पूजा के समय मन को शांत और सकारात्मक रखना आवश्यक है। पूजा से पहले स्नान करने और साफ कपड़े पहनने की तरह, मन को भी नकारात्मकता से मुक्त होना चाहिए।


दुर्भाग्य का संकेत


खुले बालों को नकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार, खुले बालों के कारण नकारात्मक ऊर्जा शरीर में प्रवेश कर सकती है। जब महिलाएं खुले बालों के साथ पूजा करती हैं, तो उनकी पूजा स्वीकार नहीं होती और इसका फल भी नहीं मिलता। इसके परिणामस्वरूप दुर्भाग्य का सामना करना पड़ सकता है।


ईश्वर का अपमान


एक और कारण यह है कि खुले बालों के कारण महिलाओं का ध्यान अपने बालों पर केंद्रित हो जाता है, जिससे वे भगवान की पूजा में ध्यान नहीं लगा पातीं। इसलिए, महिलाओं को मंदिर में हमेशा अपने बाल बांधकर जाना चाहिए। ऐसा न करना ईश्वर का अपमान माना जाता है। इसके अलावा, खुले बाल बुरी शक्तियों को भी आकर्षित कर सकते हैं, इसलिए अमावस्या और पूर्णिमा के दिन भी खुले बालों के साथ बाहर नहीं जाना चाहिए।


पुराणों में नकारात्मकता और खुले बाल


महाभारत और रामायण में भी खुले बालों को नकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। रामायण में, जब महाराजा दशरथ ने प्रभु श्री राम को राजगद्दी सौंपने का निर्णय लिया, तब महारानी कैकेयी नाराज होकर बाल खोलकर बैठ गई थीं, जिससे उनके मन में नकारात्मक विचार आए। महाभारत में, दुर्योधन ने द्रौपदी को शर्मिंदा करने के लिए उसके बालों से खींचा था। इस प्रकार, खुले बाल क्रोध और आक्रोश का प्रतीक होते हैं, इसलिए महिलाओं को मंदिर में खुले बालों के साथ जाने से मना किया जाता है।