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महिला का मंदिर में शॉर्ट्स पहनने पर विवाद, सोशल मीडिया पर छाया बवाल

एक वायरल वीडियो में एक महिला को मंदिर में शॉर्ट्स पहनने के कारण प्रवेश से रोका गया, जिससे तीखी बहस छिड़ गई। महिला ने ड्रेस कोड को चुनौती दी, जबकि पुजारी और पुलिस ने नियमों का हवाला दिया। इस घटना ने सोशल मीडिया पर दो गुटों में बहस को जन्म दिया है, जहां कुछ लोग महिला के तर्क का समर्थन कर रहे हैं, वहीं अन्य मंदिर के नियमों की सख्ती को सही ठहरा रहे हैं। यह विवाद धार्मिक मर्यादा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन की आवश्यकता को उजागर करता है।
 

सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो

एक वायरल वीडियो ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी है, जिसमें एक महिला को मंदिर के गेट पर शॉर्ट्स पहनने के कारण प्रवेश से रोका गया। मंदिर के पुजारी और वहां उपस्थित महिला पुलिस अधिकारी ने ड्रेस कोड का हवाला देते हुए उसे अंदर जाने से मना कर दिया। महिला ने हार नहीं मानी और दोनों के साथ तीखी बहस शुरू कर दी। उसने गुस्से में कहा, “ये नियम भगवान ने नहीं बनाए हैं कि मंदिर में शॉर्ट्स नहीं पहन सकते। ये आप लोगों ने बनाए हैं। मैं आपकी बात नहीं मानूंगी। आपको लोगों से बात करने की तमीज सीखनी चाहिए!” इस बहस ने सोशल मीडिया पर आग लगा दी, जहां कुछ लोग महिला के तर्क का समर्थन कर रहे हैं, जबकि अन्य मंदिर के नियमों की सख्ती को सही ठहरा रहे हैं.


विवाद का बढ़ता असर

यह वीडियो एक अन्य महिला द्वारा रिकॉर्ड किया गया था और अब यह सोशल मीडिया पर तेजी से फैल रहा है। इसे @VigilntHindutva नामक ट्विटर पेज पर साझा किया गया है, जिसे अब तक 6 लाख से अधिक बार देखा जा चुका है। वीडियो के कमेंट सेक्शन में लोग ड्रेस कोड को लेकर दो गुटों में बंट गए हैं। एक यूजर ने लिखा, “मंदिरों में ड्रेस कोड का नियम हमेशा से रहा है। ये तो बचपन से सिखाया जाता है।” वहीं, दूसरे यूजर ने कहा, “जब मंदिर प्रबंधन ने नियम बनाए हैं, तो उनका पालन करना चाहिए।” कुछ लोगों ने महिला के पहनावे की आलोचना करते हुए कहा कि इस तरह का हंगामा मंदिर के पवित्र और शांत माहौल को खराब करता है.


धार्मिक मर्यादा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता

यह विवाद एक बार फिर मंदिरों में ड्रेस कोड और धार्मिक स्थलों की मर्यादा को लेकर समाज में गर्मागर्म बहस छेड़ गया है। एक तरफ लोग धार्मिक स्थानों पर शालीनता और सम्मान की बात करते हैं, तो दूसरी ओर युवा पीढ़ी अपनी व्यक्तिगत आजादी का हक मांग रही है। इस घटना ने मंदिरों में ड्रेस कोड के नियमों पर संतुलित सोच और खुले संवाद की जरूरत को सामने ला दिया है। क्या मंदिरों में सख्त नियम जरूरी हैं या फिर व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए? ये सवाल अब हर किसी के मन में है.