महाराष्ट्र विधानसभा ने पारित किया ‘अर्बन नक्सल’ विधेयक, सुरक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में कदम
‘अर्बन नक्सल’ विधेयक का उद्देश्य
महाराष्ट्र विधानसभा ने एक महत्वपूर्ण विधेयक पारित किया है, जिसका उद्देश्य ‘अर्बन नक्सल’ गतिविधियों से निपटना है। इसे राज्य की आंतरिक सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। राज्य सरकार का लक्ष्य शहरी क्षेत्रों में छिपे हुए, शिक्षित और प्रभावशाली तत्वों पर कानूनी कार्रवाई करना है, जो राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं।
विधेयक की विशेषताएँ
इस विधेयक के तहत उन व्यक्तियों और संगठनों को लक्षित किया गया है, जो नक्सली विचारधारा को शहरी क्षेत्रों में फैलाने का कार्य करते हैं। इसमें राष्ट्र-विरोधी साहित्य का प्रचार, वामपंथी उग्रवाद का समर्थन और हिंसा की योजना बनाने को अपराध माना गया है। सुरक्षा एजेंसियों को जांच, निगरानी और गिरफ्तारी के लिए विस्तृत अधिकार दिए गए हैं। यदि कोई व्यक्ति नक्सली विचारधारा का समर्थन करता है, तो उसे कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
विधेयक की आवश्यकता
हाल के वर्षों में महाराष्ट्र के बड़े शहरों में नक्सली विचारधारा को वैचारिक संरक्षण मिल रहा है। भीमा-कोरेगांव हिंसा और उससे जुड़े मामलों में कई 'अर्बन नक्सल' कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी ने इस खतरे को उजागर किया है। शहरी युवाओं में हिंसा और वर्ग संघर्ष के विचार फैलाना लोकतंत्र और संविधान के लिए खतरा बन सकता है।
विधेयक का महत्व
यह विधेयक सुरक्षा एजेंसियों को ठोस कानूनी आधार प्रदान करेगा, जिससे वे केवल हिंसा करने वालों पर नहीं, बल्कि उन्हें प्रेरित करने वालों पर भी कार्रवाई कर सकेंगी। यह शहरी क्षेत्रों में छिपे संगठनों की पहचान और उन पर निगरानी रखने में मदद करेगा। इससे राज्य की आंतरिक सुरक्षा मजबूत होगी और वैचारिक आतंकवाद पर नियंत्रण पाने में सहायता मिलेगी।
मुख्यमंत्री का बयान
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने विधेयक को सदन में पेश किया और कहा कि इसे दोनों सदनों की संयुक्त प्रवर समिति द्वारा संशोधनों के साथ मंजूरी दी गई थी। उन्होंने आश्वासन दिया कि इस कानून का दुरुपयोग नहीं होगा। विपक्षी दलों ने विधेयक के कुछ पहलुओं पर आपत्ति जताई है, जिसमें ‘अर्बन नक्सल’ शब्द की व्यापक व्याख्या शामिल है।
विधेयक पर विवाद
कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता और विपक्षी दल इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नियंत्रण के रूप में देख रहे हैं। उनका तर्क है कि असहमति जताने वाले नागरिकों को ‘अर्बन नक्सल’ कहकर प्रताड़ित किया जा सकता है। कुल मिलाकर, यह विधेयक एक साहसिक कदम है जो राज्य को वैचारिक और गुप्त उग्रवादियों से मुक्त करने की दिशा में उठाया गया है।