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महाराष्ट्र में लिंचिंग मामले के आरोपी नेता की भाजपा में एंट्री पर विवाद

महाराष्ट्र में आगामी स्थानीय निकाय चुनावों से पहले, 2020 के पालघर लिंचिंग मामले में आरोपी काशीनाथ चौधरी की भाजपा में एंट्री ने विवाद को जन्म दिया है। चौधरी ने भाजपा में शामिल होने के बाद विपक्ष की आलोचना का सामना किया और अपनी सदस्यता को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया। उन्होंने लिंचिंग मामले में अपनी संलिप्तता के आरोपों को खारिज किया है। यह मामला महा विकास अघाड़ी के शासन के दौरान घटित हुआ था, जब साधुओं की हत्या के बाद भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर हमला बोला था।
 

महाराष्ट्र में स्थानीय चुनावों से पहले विवाद

महाराष्ट्र में आगामी स्थानीय निकाय चुनावों के मद्देनजर, 2020 के पालघर लिंचिंग मामले में कथित रूप से शामिल एनसीपी-एसपी नेता काशीनाथ चौधरी के भाजपा में शामिल होने से एक बड़ा विवाद उत्पन्न हुआ है। इस मामले में दो साधुओं और उनके ड्राइवर की हत्या की गई थी। भाजपा में शामिल होने के बाद, चौधरी ने विपक्ष की तीखी आलोचना का सामना किया। उन्होंने दहानु में सांसद हेमंत सवारा और पार्टी के जिला अध्यक्ष भरत राजपूत की उपस्थिति में अपने 3,000 से अधिक समर्थकों के साथ भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। हालांकि, व्यापक विरोध के चलते भाजपा ने उनकी सदस्यता को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है। चौधरी ने लिंचिंग मामले में अपनी संलिप्तता के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि इससे उनके परिवार को काफी मानसिक तनाव हो रहा है।


पालघर लिंचिंग की घटना

यह घटना 16 अप्रैल, 2020 को पालघर के गढ़चिंचले गाँव में हुई थी, जब एक भीड़ ने बच्चा चोर होने के संदेह में तीन व्यक्तियों की हत्या कर दी थी। घटना से लगभग दो हफ्ते पहले से ही व्हाट्सएप ग्रुपों पर बच्चों के अपहरण की अफवाहें फैलने लगी थीं, जिससे स्थानीय लोग सतर्क हो गए थे। यह मामला महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के शासन के दौरान घटित हुआ था, और उस समय भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के प्रशासन पर तीखा हमला किया था।


शिवसेना और भाजपा की प्रतिक्रिया

शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने साधुओं की हत्या को एमवीए के खिलाफ विद्रोह का एक कारण बताया था। भाजपा ने चौधरी पर लिंचिंग मामले में मुख्य साजिशकर्ता होने का आरोप लगाया था। मीडिया से बात करते हुए, चौधरी ने कहा कि मीडिया में चल रही खबरों के कारण उनका परिवार मानसिक तनाव में है। उन्होंने बताया कि घटना के समय वह पुलिस की मदद के लिए गढ़चिंचली गए थे, लेकिन उन्हें ही दोषी ठहराया गया। उनके अनुसार, पुलिस उन्हें साधुओं की जान बचाने के लिए वहाँ ले गई थी, लेकिन भीड़ इतनी उग्र थी कि वे स्थिति को नियंत्रित नहीं कर सके।