×

महाराष्ट्र में दिव्यांग छात्रों के स्कूल के पूर्व प्राचार्य को यौन उत्पीड़न के लिए पांच साल की सजा

महाराष्ट्र की एक विशेष अदालत ने दिव्यांग छात्रों के स्कूल के पूर्व प्राचार्य और एक शिक्षक को यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराते हुए पांच साल की सजा सुनाई है। अदालत ने इसे गंभीर विश्वासघात मानते हुए आरोपियों को सजा दी। यह मामला 2013-2014 के बीच का है, जब आरोपियों ने बोलने और सुनने में असमर्थ छात्राओं के साथ अनुचित व्यवहार किया। अदालत ने अभिभावकों की प्रवृत्ति की भी आलोचना की, जो ऐसी शिकायतों को नजरअंदाज करते हैं। जानें इस मामले की पूरी जानकारी।
 

विशेष अदालत का निर्णय

मुंबई
महाराष्ट्र की एक विशेष अदालत ने एक दिव्यांग छात्रों के स्कूल के पूर्व प्राचार्य और एक शिक्षक को यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराते हुए पांच साल की सजा सुनाई है। आरोप था कि ये दोनों शिक्षक बोलने और सुनने में असमर्थ छात्राओं को अपने कार्यालय में बुलाकर उनके साथ यौन उत्पीड़न करते थे। अदालत ने इसे एक गंभीर विश्वासघात मानते हुए आरोपियों को पांच साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई।

विशेष न्यायाधीश सत्यनारायण आर नवंदर ने अपने फैसले में कहा, "स्कूल एक पवित्र स्थान है। बच्चे अपने शिक्षकों पर भरोसा करते हैं और उन्हें मार्गदर्शक मानते हैं। यदि इस विश्वास का उल्लंघन किया जाए, तो इससे पीड़ितों को जीवनभर मानसिक आघात झेलना पड़ता है।"


मामले का विवरण

अदालत ने बताया कि सभी नाबालिग लड़कियां सुनने और बोलने में असमर्थ थीं, और स्कूल के प्राचार्य तथा शिक्षकों को उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी। आरोपियों ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए बच्चों की शारीरिक अक्षमता का गलत फायदा उठाया। अदालत ने 62 वर्षीय लॉर्डु पापी गाड़े रेड्डी (पूर्व प्राचार्य) और 61 वर्षीय दत्तकुमार भास्कर पाटिल को पॉस्को अधिनियम की धारा 10 और भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत दोषी ठहराया।


घटना का समय और खुलासा

क्या था पूरा मामला?
यह मामला 2013 और 2014 के बीच का है, जब रेड्डी और भास्कर स्कूल में प्राचार्य और शिक्षक के रूप में कार्यरत थे। अभियोजन पक्ष ने बताया कि वे छात्राओं को अपने कक्ष में बुलाते थे और फिर उन्हें गले लगाकर चूमते थे, जबकि दूसरा शिक्षक उनकी अश्लील तस्वीरें खींचता था और उनके साथ अनुचित तरीके से छेड़छाड़ करता था।

इनकी गतिविधियां लगभग दो साल तक चलती रहीं। एक पीड़ित ने अपने परिवार को इस बारे में बताया, जिससे मामला उजागर हुआ। एक बार मामला सामने आने के बाद अन्य छात्राओं ने भी अपनी आपबीती साझा की। चूंकि सभी छात्राएं बोलने में असमर्थ थीं, इसलिए उनके बयान लेने के लिए भाषा विशेषज्ञों की मदद ली गई।


अदालत की आलोचना

अदालत ने अभिभावकों की भी की आलोचना
अदालत ने अपने निर्णय में माता-पिता और संस्थानों की प्रवृत्ति की भी आलोचना की, जो छात्राओं की शिकायतों को हल्के में लेते हैं, खासकर जब शिक्षक समाज में उच्च स्थान रखते हों। अदालत ने प्रत्येक दोषी को पांच साल की सजा के साथ 25 हजार रुपए का जुर्माना भी भरने का आदेश दिया। इसके अलावा, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया गया कि पीड़ितों को मुआवजा योजना के तहत अतिरिक्त मुआवजा दिया जाए, क्योंकि जुर्माने की राशि पीड़ितों की पीड़ा की भरपाई के लिए अपर्याप्त है।