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महाभारत के युद्ध की जड़: विदुर की गलतियाँ और दुर्योधन की महत्वाकांक्षाएँ

महाभारत का युद्ध पांडवों और कौरवों के बीच एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसमें विदुर की कुछ गलतियाँ और दुर्योधन की महत्वाकांक्षाएँ प्रमुख भूमिका निभाती हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे विदुर ने धृतराष्ट्र को सही सलाह देने में चूक की और किस प्रकार दुर्योधन की जिद ने युद्ध को जन्म दिया। क्या यह युद्ध केवल व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं का परिणाम था? जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख।
 

महाभारत का युद्ध और विदुर की भूमिका


नई दिल्ली। द्वापर युग में महाभारत का युद्ध पांडवों और कौरवों के बीच लड़ा गया। पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य और अन्य महानुभावों को कपटी दुर्योधन की ओर से युद्ध में शामिल होना पड़ा, जो उनके लिए एक कठिनाई थी।


यह स्थिति उन्हें बार-बार मानसिक रूप से परेशान करती थी, लेकिन वे हस्तिनापुर में अपने प्रिय पांडवों के खिलाफ लड़ाई करने के लिए मजबूर थे। युद्ध को टालने के लिए कई बार दुर्योधन को समझाने की कोशिश की गई, लेकिन धृतराष्ट्र के पुत्र ने अपने भाइयों के प्रति ईर्ष्या के चलते पांडवों को केवल पांच गांव देने के लिए भी तैयार नहीं हुए। क्या यह युद्ध केवल दुर्योधन और धृतराष्ट्र की महत्वाकांक्षाओं के कारण हुआ? पितामह भीष्म के अनुसार, युद्ध भले ही दुर्योधन की जिद के कारण हुआ हो, लेकिन इसके पीछे विदुर की कुछ गलतियाँ भी जिम्मेदार थीं।


महात्मा विदुर, जो धर्मराज यम के अवतार माने जाते हैं, नीति के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने कई बार धृतराष्ट्र को गलतियों से बचने की सलाह दी, लेकिन धृतराष्ट्र ने उनकी बातों को नजरअंदाज किया, जिसके परिणामस्वरूप कौरवों का विनाश हुआ। जिस घटना की चर्चा हो रही है, वह लाक्षागृह कांड से संबंधित है। दुर्योधन ने पांडवों को जिंदा जलाने की योजना बनाई थी, जिसके लिए एक महल तैयार किया गया था। विदुर को दुर्योधन के इरादों का पता चल गया और उन्होंने समय रहते पांडवों को बचा लिया।


पांडवों को वापस हस्तिनापुर नहीं लौटने दिया गया। जब लाक्षागृह कांड हुआ, तब युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का युवराज घोषित किया गया था। विदुर ने पांडवों को सलाह दी कि वे कुछ समय तक अज्ञात रहें, जिससे दुर्योधन को हस्तिनापुर का नया युवराज घोषित किया जा सके। यह निर्णय बाद में महाभारत के युद्ध का मुख्य कारण बना।


जब पांडव वापस लौटे, तो यह सवाल उठ खड़ा हुआ कि युवराज दुर्योधन ही रहेगा या युधिष्ठिर को फिर से यह पद दिया जाएगा। इसके बाद पांडवों को इंद्रप्रस्थ देने का निर्णय लिया गया।


पितामह भीष्म ने विदुर की गलतियों के बारे में क्या कहा? महाभारत के युद्ध से पहले, पितामह भीष्म अपने प्रिय पांडवों के खिलाफ लड़ाई में शामिल होने के कारण दुखी थे। बीआर चोपड़ा की महाभारत के अनुसार, इस दौरान विदुर ने पितामह को सलाह दी कि वे अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दें और पांडवों के खिलाफ युद्ध में न उतरें। पितामह ने विदुर को कहा कि यदि उन्होंने लाक्षागृह कांड के बारे में समय पर जानकारी दी होती, तो धृतराष्ट्र को दुर्योधन को दंड देने के लिए मजबूर किया जा सकता था। इस तरह, एक ही समय में दो युवराजों की समस्या भी नहीं होती।