महाभारत की द्रोपदी: अश्वत्थामा को क्षमा देने का रहस्य
महाभारत की कथा
महाभारत कथा
महाभारत की कहानी: वर्तमान समय में, द्वापर युग में पांडवों और कौरवों के बीच हुए महाभारत युद्ध की घटनाएं सभी को ज्ञात हैं। यह युद्ध पांडवों और कौरवों के बीच हुए चौसर के खेल का परिणाम था। इसे धर्म की विजय के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। महाभारत में कई महत्वपूर्ण पात्र हैं, जिनमें द्रोपदी और अश्वत्थामा शामिल हैं।
गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा कौरवों की ओर से युद्ध में भाग लिया। उसने एक ऐसा पाप किया, जिसने मानवता को शर्मसार कर दिया। अश्वत्थामा को अमरता का वरदान प्राप्त है, लेकिन यह उसके लिए एक श्राप बन गया है। आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी।
महाभारत की कथा के अनुसार
महाभारत के युद्ध के अंत के बाद, जब दुर्योधन घायल अवस्था में युद्ध भूमि पर पड़ा था, अश्वत्थामा उससे मिलने आया। दुर्योधन ने उसे कौरवों का सेनापति बना दिया और पांडवों के सिर लाने का आदेश दिया। अश्वत्थामा अपने पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु का बदला लेना चाहता था। वह रात में पांडवों के शिविर में गया, जहां पांडव तो नहीं थे, लेकिन द्रौपदी के पांच पुत्र सो रहे थे।
अश्वत्थामा ने शिविर में आग लगा दी, जिससे पांडवों और द्रौपदी के सभी पुत्र मारे गए। अपने पुत्रों की मृत्यु की खबर सुनकर द्रौपदी अत्यंत दुखी हुई, लेकिन उसने अपने विवेक को बनाए रखा। अर्जुन ने अश्वत्थामा को पकड़ने और दंड देने की प्रतिज्ञा की। इसके बाद, अर्जुन ने अश्वत्थामा को पराजित कर द्रौपदी के सामने लाया।
द्रोपदी का क्षमा दान
द्रौपदी ने लज्जित होकर सिर झुकाया और बंधे हुए अश्वत्थामा की ओर देखा। उसने कहा कि यह गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र है। जिस प्रकार मैं अपने पुत्रों के शोक को सहन कर रही हूं, मैं नहीं चाहती कि अश्वत्थामा की माता को भी वही दुख सहना पड़े। किसी भी माता को इस तरह की पीड़ा देना उचित नहीं है, इसलिए गुरु पुत्र का वध सही नहीं है। द्रौपदी की इस बात ने सभी को चौंका दिया। भगवान कृष्ण भी द्रौपदी के निर्णय से प्रसन्न हुए।
इसके बाद, भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा के मस्तक की मणि ले ली और उसे श्राप दिया कि उसका माथा हमेशा दुखता रहेगा और वह कलियुग के अंत तक धरती पर भटकता रहेगा।
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