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महान क्रिकेटर धोनी ने कार्यभार प्रबंधन में कैसे किया बदलाव

महेंद्र सिंह धोनी ने अपने क्रिकेट करियर में कार्यभार प्रबंधन के लिए अनूठे तरीके अपनाए हैं। उन्होंने विकेटकीपिंग के अभ्यास को कम किया और टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेकर सफेद गेंद वाले क्रिकेट पर ध्यान केंद्रित किया। धोनी की यह यात्रा न केवल उनके व्यक्तिगत करियर के लिए महत्वपूर्ण रही है, बल्कि यह आधुनिक क्रिकेटरों के लिए भी एक महत्वपूर्ण सबक है। जानें कैसे धोनी ने अपने करियर को सफल बनाया और आज भी क्रिकेट में सक्रिय हैं।
 

धोनी की कार्यभार चुनौती

भारतीय क्रिकेट में कार्यभार प्रबंधन की चर्चा के बीच, तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह जैसे खिलाड़ियों पर बढ़ते दबाव का असर देखा जा रहा है। लेकिन जब यह शब्द चर्चा में नहीं था, तब महेंद्र सिंह धोनी ने इस चुनौती का सामना करने का एक अनूठा तरीका खोज लिया था, जो बेहद सफल रहा।


विकेटकीपिंग अभ्यास में कटौती

धोनी ने अपने करियर के मध्य में अपने दृष्टिकोण में बदलाव किया। पूर्व भारतीय फील्डिंग कोच आर श्रीधर ने बताया कि धोनी ने विकेटकीपिंग के अभ्यास को कम करने का निर्णय लिया। लगातार क्रिकेट खेलने के कारण, धोनी के हाथों और रिफ्लेक्सेस पर काफी दबाव था।


टेस्ट क्रिकेट से संन्यास

धोनी ने 2014 में टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेकर सफेद गेंद वाले क्रिकेट पर ध्यान केंद्रित करने का साहसिक कदम उठाया। इस निर्णय ने उनके अंतरराष्ट्रीय करियर को पांच साल और बढ़ा दिया, जो 2019 के क्रिकेट विश्व कप में उनके अंतिम प्रदर्शन के साथ समाप्त हुआ।


धोनी की विरासत

धोनी के विकेटकीपिंग आंकड़े अद्भुत हैं - 959 पेशेवर मैचों में 1,286 विकेट, जो उनकी कौशल और फिटनेस का प्रमाण है। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद भी, धोनी आईपीएल में सीएसके का नेतृत्व कर रहे हैं।


आधुनिक क्रिकेट के लिए एक सबक

धोनी की यात्रा यह दर्शाती है कि कार्यभार प्रबंधन केवल आराम के बारे में नहीं है, बल्कि प्रशिक्षण और तैयारी में स्मार्ट समायोजन के बारे में भी है। 44 वर्ष की आयु में भी पेशेवर क्रिकेट खेलना उनकी अनुकूलन क्षमता का एक बड़ा कारण है।