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महबूबा मुफ्ती के बयान पर उठे सवाल: क्या राष्ट्रगान का सम्मान जरूरी नहीं?

महबूबा मुफ्ती ने हाल ही में भाजपा पर आरोप लगाया कि वह 'बंदूक के बल पर' लोगों को राष्ट्रगान के लिए खड़ा कर रही है। उनके इस बयान ने कई सवाल उठाए हैं, जैसे कि क्या राष्ट्रगान का सम्मान जरूरी नहीं? इस लेख में हम उनके बयानों, कश्मीर की राजनीति और युवाओं के लिए राष्ट्रीय धारा के महत्व पर चर्चा करेंगे। क्या महबूबा की राजनीति केवल नकारात्मकता पर आधारित रह गई है? जानें पूरी कहानी।
 

महबूबा मुफ्ती का विवादास्पद बयान

महबूबा मुफ्ती के बयानों का मुख्य उद्देश्य हमेशा कश्मीर को राष्ट्रीय धारा से अलग रखना और राष्ट्रीय प्रतीकों पर सवाल उठाना होता है। हाल ही में उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा “बंदूक के बल पर” लोगों को राष्ट्रगान के लिए खड़ा कर रही है, जो न केवल अतिशयोक्ति है, बल्कि एक सोची-समझी नकारात्मक राजनीति का हिस्सा भी है। वास्तव में, राष्ट्रगान किसी देश की आत्मा, उसकी पहचान और संप्रभुता का प्रतीक होता है। जब कुछ लोग जानबूझकर इसके सम्मान में खड़े होने से मना करते हैं, तो यह लोकतंत्र की स्वतंत्रता का अपमान है। ऐसे में यदि पुलिस अनुशासन बनाए रखने का प्रयास करती है, तो इसे “बंदूक की राजनीति” कहकर खारिज करना राष्ट्रविरोधी मानसिकता को दर्शाता है।


महबूबा मुफ्ती की सोच पर सवाल

महबूबा मुफ्ती का यह बयान उस मानसिकता को दर्शाता है जो हर राष्ट्रीय पहल को दमन और अनुशासनात्मक कार्रवाई को दखल मानती है। विडंबना यह है कि उन्होंने खुद कहा कि उनके छात्र जीवन में राष्ट्रगान पर खड़ा होना सहज था। तो फिर आज यह सहजता क्यों गायब हो रही है? क्या इसके पीछे दशकों से चला आ रहा अलगाववादी एजेंडा और वही राजनीतिक छूट नहीं है, जिसका लाभ महबूबा जैसे नेता उठाते रहे हैं?


युवाओं के लिए राष्ट्रीय धारा का महत्व

युवाओं के खेल स्थलों और सार्वजनिक मैदानों की सुरक्षा की चिंता उचित हो सकती है, लेकिन जब वही मंच राष्ट्रगान और राष्ट्रीय भावनाओं पर चोट पहुंचाने का माध्यम बन जाए, तो समस्या और गंभीर हो जाती है। महबूबा मुफ्ती को यह समझना चाहिए कि युवाओं को नशे और भटकाव से बचाने का सबसे बड़ा उपाय उन्हें राष्ट्रीय धारा से जोड़ना है। उनकी राजनीति अब केवल नकारात्मकता और आरोपों पर आधारित रह गई है। वह हर राष्ट्रीय प्रयास को “विफलता” बताती हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि उनकी अपनी विचारधारा विफल हो चुकी है। कश्मीर अब आगे बढ़ना चाहता है, जबकि महबूबा मुफ्ती उसे अतीत की ओर खींचने का प्रयास कर रही हैं। राष्ट्रगान का सम्मान लोकतंत्र की मजबूरी नहीं, बल्कि उसकी मर्यादा है। महबूबा मुफ्ती को इस बुनियादी अंतर को समझना होगा।


महबूबा मुफ्ती का फुटबॉल मैदान दौरा

महबूबा मुफ्ती ने टीआरसी फुटबॉल मैदान में राष्ट्रगान के दौरान बैठे कई युवाओं को हिरासत में लिए जाने पर विवादित बयान दिया। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री ने बघाट-ए-बरजुल्ला स्थित ‘मुस्लिम एजुकेशनल ट्रस्ट’ (एमईटी) के खेल मैदान का दौरा करते हुए यह टिप्पणी की। ऐसी खबरें थीं कि पुलिस इस मैदान का उपयोग शहीद स्मारक बनाने की योजना बना रही है। उन्होंने कहा, “मैं डीजीपी से अपील करती हूं कि इस मामले में हस्तक्षेप करें और एमईटी स्कूल के मैदान को छोड़ दें ताकि युवा और स्थानीय लोग खेल और अन्य सामुदायिक गतिविधियों के लिए इसका उपयोग कर सकें। अगर यह मैदान भी छीन लिया गया, तो युवा भटक सकते हैं।”


स्थानीय लोगों की मांग

महबूबा ने चट्टाबल क्षेत्र में एक डेयरी फार्म ग्राउंड का दौरा भी किया, जहां स्थानीय लोगों ने इस मैदान को उनके लिए खुला रखने की मांग की। महबूबा ने कहा, “यह जगह कई दशकों से खेल गतिविधियों के लिए उपयोग होती रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी पुलवामा में रात्रिकालीन क्रिकेट प्रतियोगिता की सराहना की थी। मैं सेना के कोर कमांडर से अपील करती हूं कि कृपया सुनिश्चित करें कि इस क्षेत्र के युवा इस खेल मैदान से वंचित न रहें।”