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मध्य प्रदेश के आदिवासी युवक की 11 साल बाद मिली न्याय की उम्मीद

मध्य प्रदेश के आदिवासी युवक अनोखी लाल की कहानी एक झूठे आरोप के कारण बर्बाद हुई जिंदगी की है। 2013 में उन्हें 9 वर्षीय लड़की के बलात्कार और हत्या के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई। 11 साल जेल में बिताने के बाद, उन्हें निर्दोष करार दिया गया। इस मामले में न्याय की प्रक्रिया में खामियों और सामाजिक दबाव का प्रभाव स्पष्ट होता है। जानें कैसे अनोखी लाल ने अपनी जिंदगी को फिर से शुरू किया और उनके परिवार ने इस कठिन समय को कैसे सहा।
 

अनोखी लाल की कहानी


मध्य प्रदेश के आदिवासी युवक अनोखी लाल की जिंदगी एक झूठे आरोप के कारण बर्बाद हो गई। 2013 में, 21 वर्षीय अनोखी लाल को 9 वर्षीय एक लड़की के बलात्कार और हत्या के आरोप में केवल दो हफ्तों में फांसी की सजा सुनाई गई। यह मामला तीन अलग-अलग अदालतों में गया, और हर बार उन्हें मौत की सजा दी गई।


हालांकि, मार्च 2024 में, लगभग 11 साल (4,033 दिन) जेल में बिताने और कानूनी प्रक्रिया के छह दौर के बाद, उसी ट्रायल कोर्ट ने उन्हें निर्दोष करार दिया जिसने एक दशक पहले उन्हें सजा सुनाई थी।


मामले की शुरुआत

जनवरी 2013 में मध्य प्रदेश के एक गांव में 9 साल की बच्ची लापता हो गई। उसके माता-पिता ने उसे आखिरी बार अनोखी लाल के साथ देखा था। दो दिन बाद बच्ची की लाश मिली, जिसमें बलात्कार और हत्या की पुष्टि हुई। पुलिस ने केवल 9 दिन में जांच पूरी की और मामला अदालत में पहुंचा।


उस समय, 2012 के निर्भया कांड के बाद पूरे देश में गुस्सा और त्वरित न्याय की मांग थी, जिसका असर इस केस पर भी पड़ा। ट्रायल केवल दो हफ्तों में पूरा हुआ और अनोखी लाल को फांसी की सजा दे दी गई।


मामले में खामियां

अनोखी लाल एक गरीब आदिवासी परिवार से थे और उन्होंने कभी स्कूल नहीं देखा। राज्य ने उन्हें एक प्रॉ-बोनो वकील प्रदान किया, जो मुकदमे के दिन ही उनसे मिले। कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं था, केवल डीएनए और परिस्थितिजन्य साक्ष्य थे। लेकिन बाद में पता चला कि इन साक्ष्यों की ठीक से जांच नहीं की गई थी।


सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने जांच और मुकदमे में 'स्पष्ट खामियां' पाई और बचाव पक्ष को तैयारी का समय नहीं मिलने की बात कही। कोर्ट ने नए सिरे से ट्रायल का आदेश दिया। लेकिन तीन साल बाद फिर से उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। इस दौरान, 'प्रोजेक्ट 39ए' नाम की कानूनी सहायता संस्था ने केस की गहराई से समीक्षा शुरू की।


सच्चाई का खुलासा

डीएनए रिपोर्ट की बारीकी से जांच करने पर यह स्पष्ट हुआ कि बच्ची के प्राइवेट पार्ट से मिला डीएनए अनोखी लाल का नहीं था, बल्कि किसी अन्य पुरुष का था। अन्य साक्ष्यों को भी कोर्ट ने अविश्वसनीय मानते हुए खारिज कर दिया। अंततः, 11 साल बाद, अनोखी लाल निर्दोष साबित हुए और जेल से रिहा हुए।


जेल से रिहाई के बाद

जेल से लौटने के बाद, अनोखी लाल ने देखा कि उनका शहर और लोग बदल चुके हैं। उन्होंने कई रिश्तेदारों को पहचानने में कठिनाई महसूस की और अपनी मातृभाषा भी भूल चुके थे। उन्होंने कहा, 'पिछले 11 सालों का बदला मुझे कौन देगा? अगर मैंने आत्महत्या कर ली होती, तो सब यही मानते कि मैं दोषी था।'


पीड़िता के परिवार का दर्द

पीड़िता के पिता को अनोखी लाल की रिहाई की खबर किसी अजनबी ने दी। उनका मानना है कि गरीबी और वकील की कमी ने पूरे मामले को गलत दिशा में मोड़ दिया। उन्होंने कहा, 'अगर मेरी बेटी जिंदा होती, तो अब 21 साल की होती। वह मेरी जान थी।'


न्याय की भारी कीमत

इन 11 वर्षों ने न केवल अनोखी लाल का जीवन बदल दिया, बल्कि उनके पूरे परिवार को भी प्रभावित किया। आधी जमीन बिक गई, कानूनी खर्चों ने कर्ज बढ़ा दिया, और सालों तक मिलने-जुलने में भी पैसों की समस्या ने कठिनाई पैदा की।


अनोखी लाल की यह कहानी केवल एक व्यक्ति के लिए न्याय में देरी का उदाहरण नहीं है, बल्कि यह दिखाती है कि तेज और अधूरी जांच, कानूनी सहायता की कमी, और सामाजिक दबाव किस तरह किसी की जिंदगी बर्बाद कर सकता है।