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मणिपुर में राष्ट्रपति शासन पर कांग्रेस की दोगली नीति का आरोप

भाजपा विधायक एल सुशिंद्रो मीतई ने कांग्रेस पर मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की मांग करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अब अपनी ही मांगों से पलट रही है। सुशिंद्रो ने यह भी बताया कि राष्ट्रपति शासन की स्थिति में कई लोग इसके पक्ष में हैं, जबकि कांग्रेस के पांच विधायकों ने सरकार के विघटन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जानें इस राजनीतिक नाटक के पीछे की पूरी कहानी।
 

कांग्रेस पर आरोप


इंफाल, 18 अगस्त: भाजपा विधायक एल सुशिंद्रो मीतई ने रविवार को आरोप लगाया कि कांग्रेस ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की मांग की थी, लेकिन अब वे अपनी ही बात से पलट रहे हैं।


सुशिंद्रो ने एक कार्यक्रम के दौरान संवाददाताओं से कहा, "हम मंत्री थे और चाहते थे कि हमारी सरकार बनी रहे। लेकिन, ऐसे लोगों की संख्या अधिक थी जो सरकार को नहीं चाहते थे, और अंततः इसे जाना पड़ा।"


यह बयान मणिपुर कांग्रेस इकाई द्वारा लोकप्रिय सरकार की बहाली या नए चुनावों की बार-बार की गई मांगों के संदर्भ में आया।


उन्होंने कहा, "राष्ट्रपति शासन की पहली मांग कांग्रेस ने की थी। क्या उनके सांसद ने संसद में राष्ट्रपति शासन की मांग नहीं की थी? वे (कांग्रेस) कहते हैं कि वे पांच विधायकों के साथ क्या कर सकते हैं। हालांकि, वही पांच सबसे समस्याग्रस्त रहे हैं। उन पांच को मणिपुर के हितों के अनुसार काम करना चाहिए था।"


सुशिंद्रो ने आगे कहा, "हमारी सरकार के विघटन की शुरुआत कांग्रेस के पांच विधायकों से हुई। जब राष्ट्रपति शासन पहली बार लगाया गया, तो कांग्रेस के अध्यक्ष ने कहा था कि डबल-इंजन सरकार में से एक इंजन ब्रह्मास्त्र मिसाइल से प्रभावित हुआ है।"


उन्होंने यह भी कहा, "राष्ट्रपति शासन जारी रहेगा क्योंकि कई लोग इसके पक्ष में हैं और इसकी मांग कर रहे हैं। बाहर से ये लोग राष्ट्रपति शासन के खिलाफ बोलते हैं, लेकिन अंदर से इसका समर्थन करते हैं। मौजूदा परिस्थितियों में, राष्ट्रपति शासन जारी रहने की संभावना है। आप स्पष्ट रूप से राजनीतिक नाटक देख सकते हैं।"


मणिपुर में राष्ट्रपति शासन 13 फरवरी को लगाया गया था, जब तब के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह ने 9 फरवरी को इस्तीफा दिया था। राज्य विधानसभा, जिसकी अवधि 2027 तक है, को निलंबित स्थिति में रखा गया है।